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२८० / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड २
अ०१०/प्र०१ की 'एक्को चेय महप्पो' (७१) और 'छक्कावक्कमजुत्तो' (७२) इन दो गाथाओं को उद्धृत किया गया है।"८४ ___ "ये दोनों गाथाएँ आगे इसी प्रसंग में 'कृति-अनुयोगद्वार' में पुनः धवलाकार द्वारा उद्धृत की गयी हैं।" ८५
५."उपर्युक्त कृति-अनुयोगद्वार में नयप्ररूपणा के प्रसंग में धवला में द्रव्यार्थिकनय के ये तीन भेद निर्दिष्ट किये गये हैं : नैगम, संग्रह और व्यवहार। इनमें संग्रहनय के स्वरूप को प्रकट करते हुए कहा गया है कि जो पर्यायकलंक से रहित होकर सत्ता आदि के आश्रय से सबकी अद्वैतता का निश्चय करता है (सबको अभेदरूप में ग्रहण करता है) वह संग्रहनय कहलाता है, वह शुद्ध द्रव्यार्थिकनय है। आगे वहाँ 'अनोपयोगिनी गाथा' इस निर्देश के साथ ग्रन्थनामोल्लेख के बिना पंचास्तिकाय की 'सत्ता सव्वपयत्था' आदि गाथा (८) उद्धृत की गयी है।" ८६ .
६."वर्गणा खण्ड के अन्तर्गत स्पर्श-अनुयोगद्वार में द्रव्यस्पर्श के प्रसंग में पुद्गलादि द्रव्यों के पारस्परिक स्पर्श को दिखलाते हुए धवला में 'एत्थुवउज्जंतीओ गाहाओ' ऐसी सूचना करके 'लोगागासपदेसे एक्केक्के' आदि गाथा के साथ पंचास्तिकाय की 'खधं सयलसमत्थं' गाथा (७५) को उद्धृत किया गया है।" ८७
७. "जीवस्थान खण्ड के अवतार की प्ररूपणा करते हुए उस प्रसंग में आचार्य कुन्दकुन्दकृत चारित्रप्राभृत की 'दंसण-वद-सामाइय' आदि गाथा (२१) को उद्धृत कर धवला में कहा गया है कि उपासकाध्ययन नाम का अंग ग्यारह लाख सत्तर हजार पदों के द्वारा दर्शनिक, व्रतिक व सामायिकी आदि ग्यारह प्रकार के उपासकों के लक्षण, उनके व्रतधारण की विधि और आचरण की प्ररूपणा करता है।"८८
८ "जीवस्थान-खण्ड के प्रारंभ में आचार्य पुष्पदन्त के द्वारा जो मंगल किया गया है, उस पंचनमस्कारात्मक मंगल की प्ररूपणा में प्रसंगप्राप्त नैःश्रेयस सुख के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए धवला में प्रवचनसार की 'अदिसयमादसमुत्थं' आदि गाथा (१/१३) उद्धृत की गयी है।"८९
८४. धवलाटीका / षट्खण्डागम / पु.१ / १,१,२ / पृ.१०१ (षट्खण्डागम-परिशीलन / पृ. ५९५)। ८५. धवलाटीका / षट्खण्डागम / पु.९/४,१,४५/ पृ.१९८(षट्खण्डागम-परिशीलन / पृ. ५९५)। ८६. धवलाटीका / षट्खण्डागम / पु.९/४,१,४५ / पृ.१७०-१७१
(षट्खण्डागम-परिशीलन / पृ. ५९६)। ८७. धवलाटीका / षट्खण्डागम / पु.१३ / ५,३,१२ / पृ.१३(षट्खण्डागम-परिशीलन / पृ. ५९६)। ८८. धवलाटीका / षट्खण्डागम / पु.१ / १,१,२/ पृ.१०३ (षट्खण्डागम-परिशीलन / पृ. ६१४)। ८९. धवलाटीका / षटखण्डागम / पु.१ / १,१,१ / पृ.५९ (षट्खण्डागम-परिशीलन / पृ०६३४)।
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