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अ०१०/प्र०१
आचार्य कुन्दकुन्द का समय / २७९ टीका में कुन्दकुन्द के पंचास्तिकाय, प्रवचनसार, चारित्तपाहुड और भावपाहुड से गाथाएँ उद्धृत कर अपने कथन की पुष्टि की है। इसका विवरण माननीय पं० बालचन्द्र जी शास्त्री-कृत षट्खण्डागम-परिशीलन के आधार पर दिया जा रहा है।
१. "जीवस्थान-कालानुगम में कालविषयक निक्षेप की प्ररूपणा करते हुए धवला में तद्व्यतिरिक्त-नोआगम-द्रव्यकाल के प्रसंग में 'वुत्तं च पंचत्थिपाहुडे ववहारकालस्स अस्थित्तं' इस प्रकार पंचास्तिकाय ग्रन्थ का नाम-निर्देश करते हुए उसकी 'कालोत्ति य ववएसो---' (१०१) और 'कालो परिणामभवो ---' (१००) इन दो गाथाओं को विपरीत क्रम से (१०१ व १००) उद्धृत किया गया है।"८१
२. “आगे वेदनाकालविधान अनुयोगद्वार में तद्व्यतिरिक्त-नोआगम-द्रव्यकाल को प्रधान और अप्रधान के भेद से दो प्रकार का कहा गया है। उनमें प्रधान द्रव्यकाल के स्वरूप का निर्देश करते हुए धवला में कहा गया है कि शेष पाँच द्रव्यों के परिणमन का हेतुभूत जो रत्नराशि के समान प्रदेशसमूह से रहित लोकाकाश के प्रदेशों का प्रमाणकाल है, उसका नाम प्रधान द्रव्यकाल है। वह अमूर्त व अनादिनिधन है। उसकी पुष्टि में आगे 'उक्तं च' इस सूचना के साथ ग्रन्थनामनिर्देश के बिना पंचास्तिकाय की उपर्युक्त दोनों गाथाएँ यथाक्रम (१००-१०१) उद्धृत की गयी हैं।"
३. "पूर्वोक्त जीवस्थान-कालानुगम में उसी कालविषयक निक्षेप के प्रसंग में धवलाकार ने द्रव्यकालजनित परिणाम को नोआगम-भावकाल कहा है। इस पर वहाँ यह शंका की गयी है कि पुद्गलादि द्रव्यों के परिणाम को 'काल' नाम से कैसे व्यवहृत किया जाता है? इसके उत्तर में कहा गया है कि यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि उसे जो 'काल' नाम से व्यवहृत किया जाता है, वह कार्य में कारण के उपचार से किया जाता है। इसकी पुष्टि में वहाँ 'वृत्तं च पंचत्थि-पाहुडे ववहारकालस्स अस्थित्तं' ऐसी सूचना करते हुए पंचास्तिकाय की २३, २५ और २६ ये तीन गाथाएँ उद्धृत की गयी हैं।"८३
४. "जीवस्थान सत्प्ररूपणा में षट्खण्डागम का पूर्वश्रुत से सम्बन्ध दिखलाते हुए स्थानांग के प्रसंग में धवला में कहा गया है कि वह ब्यालीस हजार पदों के द्वारा एक से लेकर उत्तरोत्तर एक-एक अधिक के क्रम से स्थानों का वर्णन करता है। आगे वहाँ तस्सोदाहरणं ऐसा निर्देश करते हुए ग्रन्थनाम-निर्देश के बिना पंचास्तिकाय
८१. धवलाटीका / षट्खण्डागम / पु.४ / १,५,१/ पृ.३१५ (षट्खण्डागम-परिशीलन / पृ० ५९५)। ८२. धवलाटीका / षट्खण्डागम /पु.११/४,२,५,१/ पृ.७५-७६(षट्खण्डागम-परिशीलन/पृ०५९५)। ८३. धवलाटीका / षटखण्डागम / पु.४/१,५,१/ पृ.३१७ (षट्खण्डागम-परिशीलन / पृ. ५९५)।
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