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अ०१०/प्र०१
आचार्य कुन्दकुन्द का समय / २७१ अनुवाद-"आत्मा मूढ़ (बहिरात्मा), विचक्षण (अन्तरात्मा) और ब्रह्म (परमात्मा), इस तरह तीन प्रकार का है। इनमें जो देह को ही आत्मा मानता है वह मूढ़ (बहिरात्मा) कहलाता है।"
ति-पयारो अप्पा मुणहि परु अंतरु बहिरप्पु।
पर जायहि अंतरसहिउ बाहिरु चयहि णिभंतु॥ ६॥ यो.सा.। अनुवाद-"आत्मा के तीन प्रकार हैं : परमात्मा (परु), अन्तरात्मा (अंतरु) और बहिरात्मा। अन्तरात्मा-सहित होकर परमात्मा (पर) का ध्यानकर (जायहि), भ्रान्तिरहित हो (णिभंतु-निर्धान्तम्) बहिरात्मा का त्याग करो।"
ये दोहे आचार्य कुन्दकुन्द की निम्नलिखित गाथाओं के आधार पर रचे गये हैं
तिपयारो सो अप्पा पर-भिंतरबाहिरो द हेऊणं।
तत्थ परो झाइज्जह अंतोवाएण चयहि बहिरप्पा॥ ४॥ मो. पा.। अनुवाद-"आत्मा परमात्मा, अभ्यन्तरात्मा और बहिरात्मा के भेद से तीन प्रकार का है। इनमें से बहिरात्मा को छोड़कर अन्तरात्मा के उपाय से परमात्मा का ध्यान किया जाता है। हे योगी! तुम बहिरात्मा का त्याग करो।"
अक्खाणि बाहिरप्पा अंतरअप्पा हु अप्पसंकप्पो।
कम्मकलंकविमुक्को परमप्पा भण्णए देवो॥ ५॥ मो. पा.। अनुवाद-"इन्द्रियाँ (इन्द्रियोन्मुख आत्मा) बहिरात्मा हैं, आत्मसंकल्प (आत्मोन्मुख आत्मा) अन्तरात्मा है और कर्मकलंकरहित आत्मा परमात्मा है। परमात्मा ही देव कहलाता है।"
आरुहवि अंतरप्पा बहिरप्पा छंडिऊण तिविहेण।
झाइज्जइ परमप्या उवइष्टुं जिणवरिदेहि॥ ७॥ मो. पा.। अनुवाद-"मन, वचन, काय, इन तीन योगों से बहिरात्मा को छोड़कर अन्तरात्मा पर आरूढ़ हो, परमात्मा का ध्यान किया जाता है, यह जिनेन्द्रदेव का उपदेश है।" ७.७. कुन्दकुन्द की गाथाओं का अपभ्रंशीकरण
निम्नलिखित दोहों में तो जोइन्दुदेव ने कुन्दकुन्द की गाथाओं को किञ्चित् शाब्दिक हेर-फेर के साथ ज्यों का त्यों ग्रहण कर लिया है। तुलना के लिए प्रत्येक दोहे के नीचे कुन्दकुन्द की गाथा प्रस्तुत की जा रही है
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