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२६६ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड २
अ०१०/प्र०१ अतः सर्वार्थसिद्धि में कुन्दकुन्द की गाथाओं के उद्धृत किये जाने से न केवल वे पूज्यपाद स्वामी से पूर्ववर्ती सिद्ध होते हैं, अपितु उनके वचनों को पूज्यपाद द्वारा आगमरूप में स्वीकार किये जाने से वे उनसे सैकड़ों वर्ष प्राचीन भी सिद्ध होते हैं। ६.३. समाधितन्त्र-इष्टोपदेश में कुन्दकुन्द की गाथाओं का संस्कृतीकरण
पूज्यपाद स्वामी की दृष्टि में कुन्दकुन्द न केवल एक आप्तपुरुष थे, अपितु वे उनके अध्यात्मवाद से भी अत्यधिक प्रभावित थे। इसीलिए उन्होंने कुन्दकुन्द के मोक्खपाहुड, भावपाहुड आदि ग्रन्थों की अनेक आध्यात्मिक गाथाओं को संस्कृत में रूपान्तरित कर अपने समाधितन्त्र और इष्टोपदेश में समाविष्ट किया है। यथा
जं मया दिस्सदे रूवं तण्ण जाणादि सव्वहा। जाणगं दिस्सदे णंत तम्हा ज पेमि केण हं॥ २९॥ मो.पा.। यन्मया दृश्यते रूपं तन्न जानाति सर्वथा। जानन्न दृश्यते रूपं ततः केन ब्रवीम्यहम्॥ १९॥ स.तन्त्र।
जो सुत्तो ववहारे सो जोई जग्गए सकजम्मि। जो जग्गदि ववहारे सो सुत्तो अप्पणो कजे॥ ३१॥ मो.पा.। व्यवहारे सुषुप्तो यः स जागांत्मगोचरे। जागर्ति व्यवहारेऽस्मिन्सुषुप्तश्चात्मगोचरे॥ ७८॥ स.तन्त्र।
सुहेण भाविदं णाणं दुहे जादे विणस्सदि। तम्हा जहाबलं जोई अप्पा दुक्खेहि भावए॥ ६२॥ मो.पा.। अदुःखभावितं ज्ञानं क्षीयते दुःखसन्निधौ। तस्माद्यथाबलं दुःखैरात्मानं भावयेन्मुनिः॥ १०२॥ स.तन्त्र।
वर वयतवेहि सग्गो मा दुक्खं होउ णिरइ इयरेहि। छायातवट्ठियाणं पडिवालंताण गुरुभेयं ॥ २५॥ मो.पा.। वरं व्रतैः पदं दैवं नाव्रतैर्बत नारकम्। छायातपस्थयोर्भदः प्रतिपालयतोर्महान्॥ ३॥ इष्टो.।
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