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________________ २६४ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड २ ६.२. सर्वार्थसिद्धि में कुन्दकुन्द की गाथाओं के उदाहरण पाँचवी शताब्दी ई० की सर्वार्थसिद्धि में पूज्यपाद स्वामी ने कुन्दकुन्द के ग्रन्थों से अनेक गाथाएँ 'उक्तं च' कहकर उद्धृत की हैं। 'संसारिणो मुक्ताश्च' (२ / १०) सूत्र की टीका में बारस अणुवेक्खा की निम्नलिखित पाँच गाथाएँ 'उक्तं च' निर्देश के साथ उद्धृत की गई हैं सव्वे वि पुग्गला खलु कमसो असई अतखुत्तो 44 अ०१० / प्र०१ भुत्तुझिया य जीवेण । पुग्गल - परिय- संसारे ॥ २५ ॥ ये पाँचों गाथाएँ जिस क्रम से उद्धृत की गई हैं, उसी क्रम से कुन्दकुन्द की बारस-अणुवेक्खा में विद्यमान हैं तथा किसी अन्य प्राचीन ग्रन्थ में नहीं पायी जातीं। अतः यह निश्चित है कि पूज्यपाद ने ये कुन्दकुन्द की बारस - अणुवेक्खा से उद्धृत की हैं। Jain Education International सव्वम्हि लोयखेत्ते कमसो तं णत्थि जं ण उप्पणं । ओगाहणा बहुसो परिभमिदो खेत्तसंसारे ॥ २६ ॥ उस्सप्पिणि-अवसप्पिणि-समयावलियासु णिरवसेसासु । जादो मुदो य बहुसो भमणेण दु कालसंसारे ॥ २७ ॥ णिरयादिजहण्णादिसु जाव दु उवरिल्लया दु गेवज्जा । मिच्छत्तसंसिदेण दु बहुसो वि भवट्ठिदी भमिदा ॥ २८ ॥ सव्वा पयडिद्विदीओ अणुभाग-पदेस - बंधठाणाणि । मिच्छत्तसंसिदेण य भमिदा पुण भावसंसारे ॥ २९ ॥ बारस- अणुवेक्खा की निम्नलिखित गाथा (३५) भी 'सचित्तशीतसंवृताः सेतरा मिश्राश्चैकशस्तद्योनयः' (२ / ३२) सूत्र की सर्वार्थसिद्धि टीका में उद्धरण के रूप में प्राप्त होती है— 'प्रमत्तयोगात्प्राणव्यपरोपणं हिंसा" (७/१३) इस सूत्र की व्याख्या करते हुए प्रवचनसार की नीचे दर्शायी गयी गाथाएँ 'उक्तं च' कहकर सर्वार्थसिद्धि में उद्धृत की गयी हैं णिच्चिदरधा सत् य तरु दस वियलिंदिएसु छच्चेव । सुरणियतिरि चउरो चोद्दस मणुए सदसहस्सा ॥ ३५॥ मरदु व जियदु व जीवो अयदाचारस्स णिच्छिदा हिंसा । बंधो हिंसामेत्तेण पयदस्स णत्थि For Personal & Private Use Only समिदस्स ॥ ३ / १७॥ www.jainelibrary.org
SR No.004043
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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