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अ०१०/प्र०१
आचार्य कुन्दकुन्द का समय / २६१ 'व्यवहार' आदि जैसे अध्यात्मशास्त्रीय पारिभाषिक शब्दों को परिभाषित नहीं किया। यह तथ्य भी इस बात की पुष्टि करता है उपर्युक्त अध्यात्मपरक गाथाएँ यतिवृषभ की नहीं हैं, अपितु कुन्दकुन्द की ही हैं। अतः कुन्दकुन्द, यतिवृषभ से पूर्ववर्ती हैं।
५वीं श. ई. की सर्वार्थसिद्धि में कुन्दकुन्द की गाथाएँ उद्धृत ६.१. सर्वार्थसिद्धि का रचनाकाल
__पं० जुगलकिशोर जी मुख्तार ने अनेक प्रमाणों के द्वारा सर्वार्थसिद्धिकार देवनन्दी (पूज्यपाद स्वामी) का समय ईसा के पाँचवी शती (४५० ई० के लगभग) निश्चित किया है। वे स्वामी समन्तभद्र नामक ग्रन्थ में लिखते हैं
"पूज्यपाद ने पाणिनीय व्याकरण पर शब्दावतार नामक न्यास लिखा था और आप गंगराजा दुर्विनीत के शिक्षागुरु (Preceptor) थे, ऐसा हेब्बूर के ताम्रलेख, एपिग्रेफिया कर्णाटिका की कुछ जिल्दों, कर्णाटककविचरिते और हिस्टरी ऑफ कनडीज लिटरेचर में पाया जाता है। साथ ही यह भी मालूम होता है कि 'दुर्विनीत' राजा का राज्यकाल ई० सन् ४८२ से ५२२ तक रहा है। इसलिए पूज्यपाद ईसवी सन् ४८२ से भी कुछ पहले के विद्वान थे, यह स्पष्ट है। डॉक्टर बूल्हर ने७१ जो आपको ईसा की पाँचवी शताब्दी का विद्वान् लिखा है, वह ठीक ही है। पूज्यपाद के एक शिष्य वज्रनन्दी ने वि० सं० ५२६ (ई० सन् ४७०) में द्राविड संघ की स्थापना की थी, जिसका उल्लेख देवसेन के 'दर्शनसार' ग्रन्थ (वि० सं० ९९०) में मिलता है और इससे यह मालूम होता है कि पूज्यपाद 'दुर्विनीत' राजा के पिता 'अविनीत' ७२ के राज्यकाल में भी मौजूद थे, जो ई० सन् ४३० से प्रारंभ होकर ४८२ तक पाया जाता है। साथ ही, यह भी मालूम पड़ता है कि द्राविड संघ की स्थापना जब पूज्यपाद के एक शिष्य के द्वारा हुई है, तब उसकी स्थापना के समय पूज्यपाद की अवस्था अधिक नहीं तो ४० वर्ष के करीब जरूर होगी और उन्होंने अपने ग्रन्थों की रचना का कार्य ई० सन् ४५० के करीब प्रारम्भ किया होगा।" (स्वामी समन्तभद्र / पृ.१४२१४३)।
पूज्यपाद देवनन्दी के ईसा की पाँचवी शताब्दी में वर्तमान होने की पुष्टि एक अन्य प्रमाण से भी होती है। परमात्मप्रकाश और योगसार नामक प्रसिद्ध अध्यात्मग्रन्थों ७१. दि इण्डियन एण्टिक्वेरी XIV, 355. (स्वामी समन्तभद्र / पादटिप्पणी / पृ. १४३)। ७२. "अविनीत राजा का एक ताम्रलेख शक सं० ३८८ (ई० सन् ४६६) का लिखा हुआ पाया
जाता है जिसे मर्कग प्लेट
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। समन्तभद्र/पा.टि./प्र. १४३।
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