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२६० / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड २
अ०१० / प्र०१
इस प्रकार ३५ गाथाएँ कुन्दकुन्द के ग्रन्थों से तिलोयपण्णत्ती में ली गई हैं।
कुन्दकुन्द ने मोक्षमार्ग एवं जीवादि तत्त्वों के प्ररूपण में जो निश्चय और व्यवहार नयों का प्रयोग किया है, उसका भी अनुकरण यतिवृषभाचार्य ने तिलोयपण्णत्ती में किया है। यथा
णाणावरणप्पहूदी णिच्छय-ववहारपाय अतिसयए । संजादेण अनंतं णाणेणं दंसणेण
सोक्खेणं ॥ १ / ७१ ॥
विरिएण तहा खाइय - सम्मत्तेणं पि दाणलाहेहिं । भोगोपभोग- णिच्छय-ववहारेहिं च परिपुण्णो ॥ १ / ७२ ॥
अनुवाद - " ( अर्थागम के कर्त्ता भगवान् महावीर ) ज्ञानावरणादि चार घाती कर्मों के निश्चय - व्यवहाररूप विनाश-हेतुओं का प्रकर्ष होने पर अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन, अनन्तसुख और अनन्तवीर्य तथा क्षायिकसम्यक्त्व, क्षायिकदान, क्षायिकलाभ, क्षायिकभोग और क्षायिक- उपभोग इन नवलब्धियों के निश्चय - व्यवहार रूपों से परिपूर्ण हुए। "
तिलोयपण्णत्ती में कुन्दकुन्द के ग्रन्थों से उपर्युक्त गाथाएँ ग्रहण किये जाने एवं वस्तुस्वरूप के निरूपण में निश्चय - व्यवहार नयों का अनुकरण किये जाने से सिद्ध है कुन्दकुन्द द्वितीय शताब्दी ई० में हुए यतिवृषभाचार्य से पूर्ववर्ती हैं।
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यहाँ दो बातें ध्यान देने योग्य हैं। पहली यह कि समयसार के आत्मख्यातिटीकागत पाठ में जो गाथाएँ नहीं हैं, किन्तु तात्पर्यवृत्तिगत पाठ में हैं, उनमें से तीन तिलोयपण्णत्ती में मिलती हैं। इससे स्पष्ट होता है कि वे यतिवृषभ के समय में समयसार की प्रतियों में उपलब्ध थीं। दूसरी यह कि तिलोयपण्णत्ती में जो 'पुण्णेण होइ विहवो' गाथा (९/५६) है, वह परमात्मप्रकाश ( २ / ६०) में भी है । किन्तु, सम्पूर्ण परमात्मप्रकाश अपभ्रंश - दोहों में निबद्ध है, जबकि उक्त गाथा प्राकृत में है । इससे सिद्ध होता है कि वह गाथा तिलोयपण्णत्ती से ही छठी शती ई० के परमात्मप्रकाश में पहुँची है। ५. ३. तिलोयपण्णत्ती की गाथाएँ कुन्दकुन्द के ग्रन्थों में नहीं
ऊपर प्रायः सर्वत्र युक्ति - प्रमाणपूर्वक यह सिद्ध किया गया है कि उपर्युक्त गाथाएँ कुन्दकुन्दकृत ही हैं, यतिवृषभकृत नहीं, अतः कुन्दकुन्द के ग्रंथों से ही तिलोयपण्णत्ती में ली गयी हैं, तिलोयपण्णत्ती से कुन्दकुन्द के ग्रन्थों में नहीं। इसका एक प्रमाण यह भी है कि आचार्य यतिवृषभ ने अपनी प्रतिभा केवल कसायपाहुड पर चूर्णिसूत्र तथा तिलोयपण्णत्ती जैसे करणानुयोग का ग्रन्थ लिखने में ही दिखलायी है, कोई अध्यात्मग्रन्थ उनकी लेखनी से प्रसूत नहीं हुआ । तिलोयपण्णत्ती के 'सिद्धत्व - हेतु - भाव' अधिकार में भी उन्होंने 'शुभोपयोग', 'शुद्धोपयोग', 'परमार्थ', 'शुद्धात्मा', 'निश्चय',
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