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अ०१० / प्र०१
आचार्य कुन्दकुन्द का समय / २३५
२. कुन्दकुन्द ने समयसार (गा. १०९) में बन्ध के चार हेतु बतलाये हैं : मिथ्यात्व, अविरति, कषाय और योग, जब कि तत्त्वार्थसूत्र ( ८ / १ ) में प्रमाद को भी बन्धहेतु बतलाया गया है। यदि कुन्दकुन्द ने तत्त्वार्थसूत्र का अनुकरण किया होता, तो वे भी बन्ध के पाँच ही हेतु बतलाते, चार नहीं । यतः उन्होंने केवल चार हेतु बतलाये हैं, इससे सिद्ध है कि कुन्दकुन्द ने तत्त्वार्थसूत्र का अनुकरण नहीं किया । तत्त्वार्थसूत्र में पाँच हेतुओं की उपलब्धि विकास की सूचक है और विकास अर्वाचीनता का, अतः यह सिद्ध होता है कि तत्त्वार्थसूत्रकार ने चार बन्धप्रत्यय समयसार से ग्रहण किये हैं और एक उन्होंने स्वयं विस्तररुचि शिष्यों के अवबोधार्थ कषायप्रत्यय को विभाजित कर बढ़ाया है।
३. आचार्य कुन्दकुन्द ने नौ पदार्थ और सात तत्त्व दोनों का कथन किया है— सव्वविरओ वि भावहि णव य पयत्थाइ सत्त तच्चाई | जीवसमासाई मुणी चउदस - गुणठाण - णामाई ॥ ९७ ॥ भा.पा. । अनुवाद - " हे मुनि ! सर्वविरत होने पर भी तू नौ पदार्थों, सात तत्त्वों, चौदह जीवसमासों और चौदह गुणस्थानों के स्वरूप का चिन्तन कर ।”
श्वेताम्बर-आगमों में केवल नौ पदार्थों का कथन है । ४२ किन्तु तत्त्वार्थसूत्रकार ने नौ पदार्थों का कथन न कर सात तत्त्वों का कथन किया है । यतः सात तत्त्वों का कथन केवल कुन्दकुन्द के भावपाहुड में मिलता है, श्वेताम्बर - आगमों में नहीं, इससे सिद्ध है कि तत्त्वार्थसूत्रकार ने कुन्दकुन्द - वर्णित नौ पदार्थों और सात तत्त्वों में से संक्षिप्त होने के कारण सात तत्त्वों की कथनपद्धति का अनुसरण किया । अतः कुन्दकुन्द तत्त्वार्थसूत्रकार से पूर्ववर्ती हैं।
डॉ० सागरमल जी का मत है कि "दोनों (दिगम्बर और श्वेताम्बर) परम्पराओं में प्राचीन काल में नव पदार्थ ही माने जाते थे, किन्तु तत्त्वार्थसूत्र के पश्चात् दोनों में सात तत्त्वों की मान्यता भी प्रविष्ट हो गयी। चूँकि श्वेताम्बर प्राचीन स्तर के आगमों का अनुसरण करते थे, अतः उनमें नौ तत्त्वों की मान्यता की प्रधानता बनी रही, जब कि दिगम्बर - परम्परा में तत्त्वार्थ के अनुसरण के कारण सात तत्त्वों की प्रधानता स्थापित हो गई । " (जै.ध. या.स./ पृ.२१७)।
४२. श्वेताम्बरमुनि उपाध्याय श्री आत्माराम जी ने 'जीवाजीवास्त्रवबन्धसंवरनिर्जरामोक्षास्तत्त्वम्' (त.सू.१ / ४) इस सूत्र का समन्वय 'स्थानाङ्ग' के निम्नलिखित सूत्र से किया है, "नव सब्भावपयत्था पण्णत्ते तं जहा- जीवा अजीवा पुण्णं पावो आसवो संवरो निज्जरा बंधो मोक्खो" । (९/६६५ / तत्त्वार्थसूत्र जैनागम - समन्वय / पृ. ६) । किन्तु इस सूत्र में नौ पदार्थों का वर्णन है । इससे स्पष्ट है कि श्वेताम्बरागमों में सात तत्त्वों का उल्लेख कहीं भी नहीं है ।
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