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________________ अ०१०/प्र०१ आचार्य कुन्दकुन्द का समय / २१५ तत्त्वार्थसूत्र के सूत्रों की रचना में मूलाचार की गाथाओं का अनुसरण किया गया है, अतः सिद्ध होता है कि मूलाचार की रचना द्वितीय शती ई० से पूर्व अर्थात् प्रथम शती ई० के उत्तरार्ध में हुई थी। ३.४. द्वि. श. ई. की तिलोयपण्णत्ती में मूलाचार का उल्लेख तिलोयपण्णत्ती द्वितीय शताब्दी ई० का ग्रन्थ है। इसके प्रमाण इसी प्रकरण में आगे द्रष्टव्य हैं। इन्द्र-देवियों की आयु के विषय में मूलाचार के कर्ता का मत निरूपित करते हुए तिलोयपण्णत्तिकार कहते हैं पालिदोवमाणि पंचय-सत्तारस-पंचवीस-पणतीसं। चउसु जुगलेसु आऊ णादव्वा इंददेवीणं॥ ८/५३४॥ आरण-दुग-परियंतं वडते पंच पंच पल्लाईं। मूलायाराइरिया एवं णिउणं णिरूवेंति॥ ८/५३५॥ अनुवाद-"चार कल्पविमान-युगलों में इन्द्र-देवियों की आयु क्रमशः पाँच, सत्तरह, पच्चीस और पैंतीस पल्य-प्रमाण जाननी चाहिए। (८/५३४)। इसके आगे आरणयुगल पर्यन्त पाँच-पाँच पल्य की वृद्धि होती गयी है, ऐसा मूलाचार में आचार्य स्पष्टतया निरूपण करते हैं।" (८/५३५)। यह मत मूलाचार की निम्नलिखित गाथा में उपलब्ध होता है पणयं दस सत्तधियं पणवीसं तीसमेव पंचधियं। चत्तालं पणदालं पण्णाओ पण्णपण्णाओ॥ ११२३॥ अनुवाद-"प्रथम युगल में देवियों की आयु पाँच पल्य, द्वितीय युगल में सत्रह पल्य, तृतीय में पच्चीस, चतुर्थ में पैंतीस, पंचम में चालीस, षष्ठ में पैंतालीस, सप्तम में पचास और अष्टम युगल में पचपन पल्य है।" इससे सिद्ध होता है कि मूलाचार के रचयिता आचार्य वट्टकेर द्वितीय शताब्दी ई० के तिलोयपण्णत्तिकार यतिवृषभ से पहले हुए हैं। यह भी ध्यान देने योग्य है कि "मूलाचार में विशेषकर उसके पर्याप्ति-अधिकार में जिन विषयों की प्ररूपणा की गयी है, उनमें से अधिकांश की प्ररूपणा उसी पद्धति से यथाप्रसंग तिलोयपण्णत्ती में भी की गयी है। इतना ही नहीं, इन दोनों ग्रन्थों में कुछ गाथाएँ भी प्रायः शब्दशः समान उपलब्ध होती हैं।" (षट्. परि. / पृ.१६०)। इन साहित्यिक प्रमाणों से सिद्ध होता है कि 'मूलाचार' की रचना प्रथम शती ई० के उत्तरार्ध (अन्तिम चरण) में हुई है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004043
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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