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अ०१०/प्र०१
आचार्य कुन्दकुन्द का समय / २११ तत्त्वार्थसूत्र – पञ्चनवद्वयष्टाविंशति-चतुर्द्विचत्वारिंशद्-द्वि-पञ्चभेदा यथाक्रमम्।
८/५। मूलाचार - पंच णव दोण्णि अट्ठावीसं चदुरो तहेव वादालं।
दोण्णि य पंच य भणिया पयडीओ उत्तरा चेव॥१२२९॥ इसके बाद ज्ञानावरणादि की उत्तरप्रकृतियों का नामनिर्देश तथा उनकी जघन्य और उत्कृष्ट स्थितियों का निरूपण भी दोनों ग्रन्थों (तत्त्वार्थसूत्र ८/६-२०, मूलाचार / गा. १२३०-४५) में समान क्रम और समान शब्दों में किया गया है।२२ केवलज्ञानोत्पत्तिविषयक इन निरूपणों में भी बिम्ब-प्रतिबिम्बभाव है२३
तत्त्वार्थसूत्र – मोहक्षयाज्ञानदर्शनावरणान्तरायक्षयाच्च केवलम्। १०/१। मूलाचार - मोहस्सावरणाणं खयेण अह अंतरायस्स य एव।
उव्वजइ केवलयं पयासयं सव्वभावाणं॥ १२४८॥ इस प्रकार तत्त्वार्थसूत्र का सम्पूर्ण अष्टम अध्याय मूलाचार के पर्याप्ति-अधिकार की लगभग २४ गाथाओं का अनुकृत रूप है। इसके अतिरिक्त जीवों की सचित्तादि योनियों, वेदव्यवस्था, लेश्यास्वामित्व एवं प्रवीचार आदि की प्ररूपणा भी तत्त्वार्थसूत्र में मूलाचार२४ के आधार पर की गयी है। पंचमहाव्रतों की पच्चीस भावनाओं एवं पाँच समितियों के नाम-निर्देशक तत्त्वार्थसूत्र के सूत्र भी 'चारित्तपाहुड' (३२-३७), नियमसार (६१-६५), सूत्र के भगवती-आराधना (१२००-१२०५) या मूलाचार (३३७३४१, १०) की गाथाओं के आधार पर निबद्ध किये गये हैं। भगवती-आराधना और मूलाचार की ये गाथाएँ सर्वथा सदृश हैं, चारित्तपाहुड की गाथाओं से भी इनकी पर्याप्त समानता है। 'महिला लोयण-पुव्वरइ' गाथा तो चारित्तपाहुड (३४), भगवती-आराधना (१२०४) और मूलाचार (३४०) तीनों में ज्यों की त्यों है। तत्त्वार्थसूत्र के उपर्युक्त सूत्रों का जहाँ चारित्तपाहुड, भगवती-आराधना और मूलाचार की गाथाओं से शब्दगत और अर्थगत निकट सादृश्य है, वहाँ श्वेताम्बरीय समवायांग के वाक्यों से अल्पाधिक वैषम्य है,२५ जिससे सिद्ध होता है कि उक्त सूत्रों की रचना चारित्तपाहुड आदि दिगम्बरग्रन्थों का अनुकरण कर की गयी है।
२२. वही / पृ. १८३। २३. वही / पृ. १८३। २४. मूलाचार / गाथा ११०१-११०३, ११३०-११३२, ११३६-११३८, ११४१-११४५ । २५. देखिए , उपाध्याय मुनि श्री आत्मारामकृत 'तत्त्वार्थसूत्र-जैनागम-समन्वय'/ पृ० १५७-१६०।
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