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[बाईस]
जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड २ - कोठिया जी का लेख : 'संजद पद के सम्बन्ध में अकलङ्कदेव का महत्त्वपूर्ण अभिमत'
६८९ - कोठिया जी के मत में किंचित् संशोधन आवश्यक
६९३ ३. 'संजद' पद होने के पक्ष में सोनी जी का तर्क अष्टम प्रकरण-कर्मसिद्धान्त-व्यवस्था से वेदवैषम्य की सिद्धि
६९६ १. प्रो० हीरालाल जी का वेदवैषम्य विरोधीमत
६९६ २. प्रोफेसर सा० के वेदवैषम्य-विरोधी मत का निरसन
६९८ - उपसंहार : षट्खण्डागम के दिगम्बरग्रन्थ होने के प्रमाण
सूत्ररूप में नवम प्रकरण-डॉ० सागरमल जी के मत में परिवर्तन
- षट्खण्डागम दिगम्बरपरम्परा का ही ग्रन्थ - साध्वी दर्शनकलाश्री जी के मतानुसार षट्खण्डागम दिगम्बरग्रन्थ ।
द्वादश अध्याय
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कसायपाहुड प्रथम प्रकरण-यापनीयग्रन्थ मानने के पक्ष में प्रस्तुत हेतु
१. पहला मत और उसके पोषक हेतु २. दूसरा मत और उसके पोषक हेतु ३. दूसरे मत से पहले मत का निरसन ४. दूसरा मत कसायपाहुड के सम्प्रदाय का अनिर्णायक
५. निरन्तर बदलते हुए पूर्वापरविरोधी मत द्वितीय प्रकरण-दिगम्बरग्रन्थ होने के प्रमाण १. अन्तरंग प्रमाण-यापनीयमत-विरुद्ध सिद्धान्तों की उपलब्धि
१.१. वेदत्रय एवं वेदवैषम्य का प्रतिपादन १.२. गुणस्थानसिद्धान्त की उपलब्धि
१.३. शौरसेनी प्राकृत में निबद्ध २. बहिरंग प्रमाण
२.१. कसायपाहुड ईसापूर्व द्वितीय शती के उत्तरार्ध में रचित
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