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अ०१० / प्र०१
आचार्य कुन्दकुन्द का समय / २०५ किया गया है। सम्यग्दर्शन धर्म (मोक्षमार्ग) का मूल क्यों है, इस प्रश्न का समाधान किया जाना आवश्यक था। इस हेतु 'दंसणभट्ठा भट्ठा', 'सम्मत्तरयणभट्ठा' तथा 'सम्मत्तविरहिया' ये तीन उत्तरवर्ती गाथाएँ रची गई हैं । पहिली में बतलाया गया है कि सम्यग्दर्शन से च्युत हो जाने पर चारित्र के रहते हुए भी मोक्ष नहीं हो सकता, दूसरी में कहा गया है कि सम्यग्दर्शन से भ्रष्ट हो जाने पर बहुत से शास्त्रों का ज्ञान होने पर भी मुक्ति संभव नहीं है तथा तीसरी में दर्शाया गया है कि सम्यग्दर्शन के बिना उग्र तप करने पर भी मोक्ष असंभव है। इन तीनों गाथाओं से इस प्रश्न का समाधान हो जाता है कि सम्यग्दर्शन धर्म (मोक्षमार्ग) का मूल क्यों है ? इस प्रकार 'दंसणभट्ठा भट्ठा' गाथा के रचे जाने के लिए दंसणपाहुड में अर्थगत प्रसंग या हेतु भी विद्यमान है, जिसका भगवती आराधना में अभाव है।
यद्यपि भगवती - आराधना की उक्त गाथा से पूर्व की दो गाथाओं में सम्यक्त्व को ज्ञान, चारित्र, वीर्य, और तप का आधार तथा मूल कहा गया है । १५ तथापि उसे धर्म (मोक्षमार्ग) का मूल न कहे जाने से 'दंसणभट्ठो भट्ठो' गाथा का कथन उस तरह सहेतुक सिद्ध नहीं होता, जिस तरह से दंसणपाहुड में होता है। इसके अतिरिक्त सम्यक्त्व को ज्ञान, चारित्र आदि का मूल कहनेवाली गाथा के पश्चात् निम्नलिखित गाथा आ जाती है।
भावाणुराग - पेमाणुराग - मज्जाणुराग-रत्तो व्वा ।
धम्माणुरागरत्तो य होहि जिणसासणे णिच्चं ॥ ७३६ ॥
अनुवाद - " इस जगत् में कोई परपदार्थों का अनुरागी है, कोई स्नेहीजनों का प्रेमानुरागी है और कोई मद्यानुरागी है, किन्तु तुम जिनशासन में रहकर सदा धर्मानुरागी रहो।"
इससे प्रसंग बदल जाता है और इस गाथा के बाद रखी गई 'दंसणभट्ठो भट्ठो' गाथा अर्थ की दृष्टि से पूर्वापरसम्बन्ध - रहित हो जाती है। इससे स्पष्ट होता है कि यह गाथा शिवार्य ने दंसणपाहुड से लेकर बीच में प्रविष्ट की है।
ग - दंसणपाहुड में दंसणभट्ठा तथा भट्ठा शब्दों का प्रयोग अनेक गाथाओं में किया गया है, जैसे- 'दंसणभट्ठा' (गाथा ३), 'सम्मत्तरयणभट्ठा' (गाथा ४), 'जिणदंसणभट्ठा' (गाथा १०), 'दंसणेसु भट्ठा' (गाथा १२) तथा निम्नलिखित गाथा में
१५. मा कासि तं पमादं सम्मत्ते सव्वदुक्खणासयरे । णाणचरणवीरियतवाणं ॥ ७३४ ॥
सम्मत्तं खु दिट्ठा
नगरस्स जह दुवारं मुहस्स चक्खू तरुस्स जह मूलं । तह जाण सुसम्मत्तं
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णाणचरणवीरियतवाणं ॥ ७३५ ॥ भगवती - आराधना ।
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