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अन्तस्तत्त्व
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५६१
[उन्नीस] ३.१. तीर्थंकर-प्रकृति-बन्ध के सोलह कारण षट्खण्डागम से ५५७ ३.२. गुणश्रेणीनिर्जरा के दस स्थान षट्खण्डागम से
५५७ ३.३. तत्त्वार्थसूत्र के अनेक सूत्रों की रचना का आधार
षटखण्डागम ३.४. षट्खण्डागम के भावानुयोगद्वार का तत्त्वार्थसूत्र में
संक्षेपीकरण ३.५. तत्त्वार्थसूत्र में गुणस्थान षटखण्डागम से
५६१ ३.६. षट्खण्डागम की अपेक्षा तत्त्वार्थसूत्र में नयविकास ३.७. षट्खण्डागम की अपेक्षा तत्त्वार्थसूत्र में प्रतिपादनशैली का विकास
५६१ ४. षट्खण्डागम की रचना यापनीयसंघोत्पत्ति से बहुत पहले ५६२ तृतीय प्रकरण-यापनीयपक्षधर हेतुओं की असत्यता एवं हेत्वाभासता ५६३
१. दिगम्बरपट्टावली में नाम न होना दिगम्बर न होने का हेतु नहीं । ५६३ २. दिगम्बरपट्टावलियों में धरसेन का नाम उपलब्ध भी है
५६४ ३. नन्दिसंघ की प्राकृतपट्टावली यापनीयपट्टावली नहीं
५६५ ४. नन्दिसंघ की प्राकृतपट्टावली सर्वथा अप्रामाणिक नहीं
५६६ ५. धरसेन का एक अस्तित्वहीन संघ का आचार्य होना असंभव ५६७ ६. जोणिपाहुड दिगम्बरपरम्परा का ग्रन्थ
५६८ ७. 'पण्णसवण' उपाधि का एक अस्तित्वहीन संघ से सम्बन्ध असंभव
५६९ ८. शाब्दिक उलटफेर युक्ति-प्रमाणविरुद्ध
५७० ९. महाकर्मप्रकृतिप्राभृत के उत्तराधिकारी दिगम्बर और श्वेताम्बर ५७३ १०. समानगाथाएँ एकान्त-अचेलमुक्तिवादी मूलसंघ की सम्पत्ति
५७४ ११. दिगम्बरग्रन्थों की गाथाएँ श्वेताम्बरग्रन्थों में १२. संयतगुणस्थान की प्राप्ति भावस्त्री को
५७८ चतुर्थ प्रकरण- षट्खण्डागम के दिगम्बरग्रन्थ होने के प्रमाण :
यापनीयमत-विरुद्ध सिद्धान्तों की उपलब्धि १. सत्प्ररूपणा का ९३वाँ सूत्र स्त्रीमुक्ति-निषेधक
५८१ २. षटखण्डागम में गुणस्थानाश्रित बन्धमोक्षव्यवस्था
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