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अन्तस्तत्त्व
[सत्रह]
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१३. कुन्दकुन्द साहित्य में स्याद्वाद-सप्तभंगी, तत्त्वार्थसूत्र में नहीं ४८२ - निरसन : कुन्दकुन्दसाहित्य 'तत्त्वार्थ' के सूत्रों की रचना का आधार
४८२ १४. बहिरात्मादि भेद पूज्यपाद (७ वीं शती ई०) से गृहीत
४८३ ___निरसन : श्रुतकेवली के उपदेश से गृहीत
४८३ सप्तम प्रकरण-डॉ० चन्द्र के अपभ्रंश-प्रयोग-हेतुवाद का निरसन अष्टम प्रकरण-प्रो० हीरालाल जी जैन के मत का निरसन
४८९ १. प्रो० हीरालाल जी का मत १.१. पहला लेख : 'शिवभूति और शिवार्य'
लेखक : प्रो० हीरालाल जी जैन १.२. दूसरा लेख : 'जैन इतिहास का एक विलुप्त अध्याय'
लेखक : प्रो. हीरालाल जी जैन २. निरसन
५०९ २.१. कल्पसूत्र के शिवभूति और बोटिक शिवभूति में एकत्व असंभव ५०९ २.२. शिवार्य आपवादिक सवस्त्रलिंग के विरोधी
५११ २.३. दिगम्बर-परम्परा ऐतिहासिक दृष्टि से पाँच हजार वर्ष प्राचीन ५११ २.४. भद्रबाहु-द्वितीय शिवभूति के शिष्य नहीं ।
५११ २.५. कुन्दकुन्द भी भद्रबाहु-द्वितीय के शिष्य नहीं
५१२ २.६. शिवार्य कुन्दकुन्द से परवर्ती
५१५ २.७. अनहोनी को होनी बनाने का अद्भुत कौशल
५१५ २.८. जैन इतिहास का मनगढन्त अध्याय २.९. प्रथम लेख : 'शिवभूति, शिवार्य और शिवकुमार'
लेखक : पं० परमानंद जी जैन शास्त्री, सरसावा २.१०. द्वितीय लेख : 'क्या नियुक्तिकार भद्रबाहु और
स्वामी समन्तभद्र एक हैं?'लेखक : न्यायाचार्य पं० दरबारीलाल जी जैन कोठिया ५२१ २.१०.१. स्वामी' उपाधि का प्रयोग पात्रकेसरी आदि के लिए भी
५२२ २.१०.२.नियुक्तिकार भद्रबाहु और समन्तभद्र में सैद्धान्तिक मतभेद
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