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[ सोलह ]
जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड २
६. ४. 'स्यात्' निपात का प्रयोग बौद्धसाहित्य में भी
षष्ठ प्रकरण – प्रो. ढाकी के मत का निरसन
-
१.
८ वीं शती ई० से पूर्ववर्ती ग्रन्थों में कुन्दकुन्द का उल्लेख नहीं निरसन : 'मूलाचार' आदि में कुन्दकुन्द की गाथाएँ
२. कुन्दकुन्दान्वय-लेखयुक्त मर्करा - ताम्रपत्र जाली
३.
निरसन : पूर्णत: कृत्रिम नहीं, कुन्दकुन्दान्वय - उल्लेख प्राचीन ८ वीं शती ई० के राजा शिवमार के लिए प्रवचनसार की रचना निरसन : जयसेनाचार्य - वर्णित शिवकुमार राजा नहीं थे
४. ८वीं शती ई० के कुमारनन्दि - सिद्धान्तदेव कुन्दकुन्द के गुरु निरसन : दानपत्र में न सिद्धान्तदेव का नाम है, न कुन्दकुन्द का
५. लिङ्गप्राभृतोक्त शिथिलाचार छठी शती ई० से परवर्ती निरसन : उक्त शिथिलाचार अनादि से
६. छठी शती ई० - रचित षट्खण्डागम पर कुन्दकुन्द की टीका
का अनवसर
१०. आत्मनिरूपण में ८वीं शती ई० के गौडपाद का अनुसरण निरसन : कुन्दकुन्द द्वारा श्रुतकेवली के उपदेश का अनुसरण ११. 'स्वसमय', 'परसमय' शब्दों का नवीनार्थ में प्रयोग
निरसन : आत्मा के अर्थ में भी 'समय' शब्द का प्रयोग परम्परागत
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O निरसनः षट्खण्डागम ईसापूर्व प्रथमशती के पूर्वार्ध की रचना ७. कुन्दकुन्द द्वारा छठी शती ई० के 'मूलाचार' का अनुकरण निरसन : 'मूलाचार' में कुन्दकुन्द की गाथाएँ
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८. कुन्दकुन्द के ग्रन्थों में छठी शती ई० के श्वेताम्बरग्रन्थों की गाथाएँ ४६६ → निरसन : कुन्दकुन्द का स्थितिकाल ईसापूर्वोत्तर प्रथम शताब्दी ९. कुन्दकुन्द द्वारा निश्चयनय का गहन - विस्तृत प्रयोग
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निरसन : श्वेताम्बरमत में निश्चयनय के गहन - विस्तृत प्रयोग
१२. कुन्दकुन्द - प्रतिपादित 'शुद्धोपयोग' ८वीं शती ई० से पूर्व अज्ञात निरसन : पूर्ववर्ती ग्रन्थों में भी शुद्धोपयोग का उल्लेख
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