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________________ अ०८/ विस्तृत सन्दर्भ कुन्दकुन्द के प्रथमतः भट्टारक होने की कथा मनगढन्त /१५३ सद सुयकेवलणाणी पञ्च जणा विण्हु नन्दिमित्तो य। अपराजिय गोवड्डण (तह) भद्दबाहु य संजादा॥ ६॥ वर्ष १०० मै ए पाँच श्रुतकेवली हुवा विष्णुनन्दि १४ नन्दिमित्र १६ वर्ष अपराजित वर्ष २२ गोवरधन (sic) वर्ष १९ भद्रबाहुजी वर्ष २९॥ ए पाँच आचार्य श्रुतकेवली वर्ष १०० मै हूवा॥ (3) तैठा पाछैय्या नैं ग्यारा अङ्ग चौदा पूर्व को पाठ कण्ठि आवैतो अर पुस्तक न छाजै॥ द्वादशाङ्ग का पद एक सो बारा कोडि तियासी लाख अठावन हजार पाँच पद छै ११२८३५८००० ॥ ५॥ एक पद का श्लोक बतीस अक्षऱ्या एता होय। इक्यावन कोडि आठ लाख चोरासी हजार छ सै साट अकवीस ५१०८८४ ६२१ श्लोक हुवा। सो बारा अङ्ग ने लिखताँ स्याही पैतीस हजार नो सै अठ्याणवे कोडिमण अर तेतीस लाखमण एक सो साटा अठाईसमण टङ्क सवा लागै ३५९९८३३००१२८ टङ्क॥ सहस्र श्लोक लिखताँ पइसा १ भरी स्याही लागै। तै को लिखै तोल चालीस की एती लागै॥ (4) तैठा. पाछै महावीर स्यु वरष १६२ पाछै दसपूर्वधारी हुवा ११ मुनि [॥ गाथा॥] सद-बासट्ठि सु वासे गये सु उप्पण्ण दह सु पुव्वधरा । सद · तिरासि वासाणि य एगादह मुणिवरा जादा॥ ७॥ आयरिय विसाख पोट्ठल खत्तिय जयसेण नागसेण मुणी। सिद्धत्थ धित्ति-विजयं बुहिलिङ्ग-देव-धमसेणं॥ ८॥ दह उगणीस य सत्तर इकवीस अठारह सत्तर। अठारह तेरह वीस चउदह चोदय कमे णेयं ॥ ९॥ श्री वीरात् वर्ष १६२ विशाखाचार्य वर्ष १०। श्रीवीरात् वर्ष १७२ प्रोष्ठिलाचार्य वर्ष १९। श्रीवीरात् वर्ष १९१ क्षत्रियाचार्य वर्ष १७। श्रीवीरात् वर्ष २०८ जयसेनाचार्य वर्ष २१। श्रीवीरात् वर्ष २२९ नागसेनाचार्य वर्ष १८। श्रीवीरात् वर्ष २४७ सिद्धार्थाचार्य वर्ष १७। श्रीवीरात् वर्ष २६४ धृतिसेनाचार्य वर्ष १८। श्रीवीरात् वर्ष २८२ विजयाचार्य वर्ष १३। श्रीवीरात् वर्ष २९५ बुद्धिलिङ्गाचार्य वर्ष २०। श्रीवीरात् वर्ष ३१५ देवाचार्य वर्ष १४। श्रीवीरात् वर्ष ३२९ धर्मसेनाचार्य॥ वर्ष १८३ पर्यन्त दशपूर्व का धारी हुवा। १८३ वर्ष एक सो तियासी मै। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004043
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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