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________________ विस्तृत सन्दर्भ नन्दिसंघ की प्राकृत पट्टावली (The Indian Antiquary, vol. XX, pp. 344-347) Introduction of Pattāvali A ९९०॥ अथ पट्टावली लिख्यते॥ श्रीत्रैलोक्याधिपं नत्वा स्मृत्वा सद्गुरुभारतीं। वक्ष्ये पट्टावली रम्यां मूलसङ्घगणाधिपं॥ १॥ श्रीमूलसङ्घप्रवरे नन्द्याम्नाये मनोहरे। बलात्कारगणोत्तंसे गच्छे सारस्वतीयके॥ २॥ कुन्दकुन्दान्वये श्रेष्ठं उत्पन्नं श्रीगणाधिपं। .. स एवात्र प्रवक्ष्यति श्रूयतां सज्जनाः जनाः॥ ३॥ (1) अथ वंशाधिकार प्रथम पट्टावली विषै युगादि चौदा कुलकर हूवा ॥ १४ नाम छै॥ तैठी पाछै युग ल्या धर्मनिवारक संसारतारक आदिनाथ जी १ इति २४ वीर अन्तिम हूवा ॥ तैठा वर्ष ६२ ताई केवली रह्ये॥ गाथा॥ अन्तिमजिणणिव्वाणे केवलणाणी य गोयममुणीन्दो। बारह वासे य गये सुधम्मसामी य संजादो॥ १॥ तह बारह वासे पुण संजादो जम्बुसामि मुणिरायो। अठतीस वास रहियो केवलणाणी य उक्किट्ठो॥ २॥ बासठि केवलवासे तिण्ह मुणि गोयमसुधम्मजम्बू ।। बारह बारह दो जण तिय दुगहीणं च चालीसं ॥ ३॥ (2) और पाछै गोतम स्वामी वर्ष १२ केवली रह्यो। तैठा पाछै जम्बू स्वामी ३८ केवली रह्यो। एवं वर्ष ६२ मै केवली रह्या ॥ तलै पाछै ५ श्रुतकेवली लिखिते॥ गाथा॥ सुयकेवलि पञ्च जणा बासठि वासे गये सु संजादा। पढमं चउदह वासं विण्हुकुमारं मुणेयव्वं ॥ ४॥ नँदिमित्त वास सोलह तीय अपराजिय वास बावीसं। इगहीण-वीस वासं गोवद्धण भद्दबाहु गुणतीसं ॥ ५ ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004043
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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