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१५४ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड २
अ०८/ विस्तृत सन्दर्भ (5) सो दश पूर्व के लिखवै स्याही तोल चालीस के, ग्यारा हजार एक सौ पैसठि कोडिमण अर दोय लाखमण अठावन हजारमण तीनि सै तिराणवैमण सेर पटरा लागै॥
सो यो एतो पाठयाँ ११ आचार्या नै कण्ठ आवैतो अर पुस्तक न छौँ।
(6) इह स्थिति पाछै एकादशाङ्गधारी उपना वर्ष २२० ॥ तिह मै वर्ष १२३ ताँई तौ एकादशाङ्ग पाट ५ हुवा॥ गाथा॥
अन्तिमजिणणिव्वाणे तियसय-पणचाल वास जादे सु। एगादहङ्गधारिय पञ्च जणा मुणिवरा जादा॥ १०॥ नक्खत्तो जयपालग-पण्डव-धुवसेण-कंस-आयरिया। अठारह वीस वासं गुणचालं चोद बत्तीसं॥ ११॥
सद तेवीस य वासे एगादह अङ्गधर जादा॥ श्री वीरात् वर्ष ३४५ नक्षत्राचार्य वर्ष १८। श्रीवीरात् वर्ष ३६३ जयपालाचार्य वर्ष २०। श्रीवीरात् वर्ष ३८३ पाण्डवाचार्य वर्ष ३९। श्रीवीरात् वर्ष ४२२ ध्रुवसेनाचार्य वर्ष १४। श्रीवीरात् वर्ष ४३६ कंसाचार्य वर्ष ३२॥
(7) वर्ष १२३ पाछै वर्ष ९७ मै दशाङ्गधारी उतरा। १२३ ता उतरता हुवा पाट ४॥ गाथा॥
वासं सत्ताणवदि (य) दसङ्ग नव अट्ठ अङ्गधरा ॥ १२॥ सुभदं च जसोभदं भद्दबाहु कमेण य। लोहाचज्ज मुणीसं च कहियं च जिणागमे ॥ १३॥ छह अट्ठारह वासे तेवीस बावण वास मुणिणाहं।
दस-नव अट्ठङ्गधरा वास दुसद वीस सव्वेसु॥ १४॥ वर्ष ९७ मै पाट ४ हुवा॥ श्रीवीरात् वर्ष ४६८ सुभद्राचार्य वर्ष ६। श्रीवीरात् वर्ष ४७४ यशोभद्राचार्य वर्ष १८ श्रीवीरात् वर्ष ४९२ भद्रवाहु जी वर्ष २३॥ श्रीवीरात् वर्ष ५१५ । लोहाचार्य जी वर्ष ५०॥ एव वर्ष ९७॥ अङ्ग घटता घटता रह्या वर्ष २२० ताई॥
(8) ग्यारा अङ्ग कै लिखवै स्याही तो गैतै को व्योरो एक हजार दोय सै एक्यासी कोडिमण अर छ लाख गुणचास हजार छै सै चोसठिमण पावडो टङ्क। सवा लागै तोल चालीस कै १२८१०६४९६६४ टङ्क पाव १॥ एतो पाठय्याँ आचार्या नै कण्ठि आवतो अर पुस्तक न छा॥
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