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________________ १४० / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड २ अ०८/ प्र०७ और सप्तम नरकगामी तथा निगोदगामी तक बतला दिया है। अभिषेक और पूजनक्रियाओं के सम्बन्ध में भविष्यवर्णना रूप से जो कथन किया गया है वह प्रायः उन्हीं को लक्ष्य करके कहा गया है।२७ ये पंचमकाल के (कलियुगी) लोग इन क्रियाओं को नहीं मानेंगे अथवा अमुक विधि से अभिषेक-पूजा नहीं करेंगे, क्रियाओं का उत्थापन १२७. इस प्रकरण के भविष्यवर्णनावाले अधिकांश वाक्य इस प्रकार हैं, जिन्हें पढ़कर विज्ञ पाठक स्वयं जान सकेंगे कि वे तेरहपंथियों आदि को लक्ष्य करके ही लिखे गये २. कलौ वै मानवा मूढा चाभिषेकक्रियामिमाम्। नूनमुत्थापयिष्यन्ति स्वस्वमतिविपर्ययात्॥ ५०९॥ शास्त्राणां वचनं मूर्खा लोपयिष्यन्ति निश्चयात्। नूतनं नूतनं मागं करिष्यन्ति स्वकीर्तये॥ ५१० ।। दास्यन्ति सर्वग्रन्थानां दोषं स्वमतिसम्बलात्। संस्कृतं प्राकृतं ग्रन्थं वाचयिष्यन्ति नैव च॥ ५११॥ स्वं स्वं कल्पित-वाक्यं च मानयिष्यन्ति ते नराः। जैनागम-विनिर्मुक्ता आचार्यागम-निन्दकाः॥ ५१२ ।। स्वस्वमतस्य पक्षस्य पालका गुरुनिन्दकाः। कृतघ्नाः ते भविष्यन्ति जैनेन्द्रमतघातकाः॥ ५१३ ॥ (इनके अनन्तर ही 'द्वितीया च क्रिया प्रोक्ता' इत्यादि रूप से पूजन क्रिया का वर्णन है।) अनेन विधिना भूप कलौ मूढाश्च ये नराः। करिष्यन्ति जिनेन्द्राणां पूजा नैव मदोद्धताः॥ ६२३॥ तस्मिन् तदुद्भवाः क्रूराः सुबोधलववर्जिताः। वचनोत्थापकाः स्वस्यागमस्यैव प्रतिश्चयात्॥ ६२४॥ (इनके बाद 'अंगपूर्वानाराधीश स्थास्यन्ति मत्परं खलु' इत्यादि रूप से भविष्यवर्णना के जो चार श्लोक दिये हैं और श्लोक नं० ६४० तक भूतादिवर्णना को लिये जो वाक्य दिये हैं, उनका प्रस्तावित पूजनक्रिया के साथ कोई खास सम्बन्ध नहीं है।) ३. कलौ धर्मप्रकाशार्थं सर्वलोकस्य साक्षितः। नूतनां स्थापनां लोकाः करिष्यन्ति च मायिनः॥ ६४१ ॥ केचिच्च द्वेषका मर्त्याः केचिच्च सेवकाः खलु। एवं तस्मिन् भविष्यन्ति कलौ च मगधाधिप॥ ६४२ ॥ जैनागमसुवाक्येषु ह्यमीषां मगधेश्वर । निश्चयो न भविष्यति संशयाधीनचेतसाम्॥ ६४३ ॥ ग्रन्थानां पूजकाः केचित् जिनबिम्बस्य निन्दकाः। कलौ भेदाह्यनेके च ज्ञातव्या श्रेणिक त्वया॥ ६४४ ॥ Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004043
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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