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११४ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड २
अ०८/ प्र०५ नहीं, अपितु दिगम्बर थे। इससे इस तथ्य की भी पुष्टि होती है कि उनसे सम्बन्धित क्राणूगण एवं मेषपाषाणगच्छ भी दिगम्बरों के ही गण-गच्छ थे।
इन तथ्यों की उपेक्षा कर आचार्य श्री हस्तीमल जी ने अपने ही मन से क्राणूरगण को यापनीयों का गण मान लिया और आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती को यापनीय घोषित कर जिज्ञासुओं को भ्रमित करने की चेष्टा की है। यह जिज्ञासुओं के साथ और प्रमाणसिद्ध कथन करनेवाले इतिहासकार की प्रतिष्ठा के साथ घोर अन्याय है।
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