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________________ २७६ २७८ २८९ २९० २९१ २९१ २९६ [बारह ] जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड २ ९.१. विजयोदया का रचनाकाल २७५ ९.२. विजयोदया में कुन्दकुन्द की गाथाओं के उदाहरण १०. ८वीं श० ई० की धवला, जयधवला में कुन्दकुन्द की गाथाएँ १०.१. धवला का रचनाकाल ७८० ई. २७८ १०.२. धवला में प्रमाणस्वरूप कुन्दकुन्द की गाथाएँ एवं ग्रन्थनाम २७८ ११. मर्करा-ताम्रपत्रलेख में कुन्दकुन्दान्वय का उल्लेख २८३ - पूर्णतः कृत्रिम होने के मत का निरसन २८३ १२. ४७० ई० के पूर्व निर्ग्रन्थ-श्रमणसंघ के शास्त्रों का अस्तित्व १३. विरोधीमतों का निरसन द्वितीय प्रकरण-मुनि कल्याणविजय के मत का निरसन १. कदम्बवंशी शिवमृगेश के लिए पंचास्तिकाय की रचना . - निरसन : जयसेनाचार्य-वर्णित शिवकुमार राजा नहीं थे २९१ - 'शिवकुमारमहाराज' नामक मुनि का उल्लेख २. नियमसार में वि० सं० ५१२ में रचित 'लोकविभाग' का उल्लेख २९९ - निरसनः 'लोकविभागों में' यह पद लोकानुयोग-विषयक प्रकरणसमूह का वाचक, स्वतन्त्रग्रन्थ का नाम नहीं २९९ ३. समयसार में तृ० श० ई० के विष्णुकर्तृत्ववाद का उल्लेख ३०१ निरसन : विष्णुकर्तृत्ववाद ऋग्वेदकालीन ३०२ ४. षट्प्राभृतों में परवर्ती चैत्यादि एवं शिथिलाचार का वर्णन ३०४ - निरसन : चैत्यगृह-प्रतिमादि ईसापूर्वकालीन, शिथिलाचार अनादि ३०४ ५. मर्करा-ताम्रपत्र में विक्रम की ७वीं सदी के बाद प्रचलित 'भटार' शब्द का प्रयोग - निरसनः आदरसूचक 'भटार' शब्द का प्रचलन प्राचीन । ६. कोई भी पट्टावली वीर नि० सं० के अनुसार रचित नहीं - निरसन : 'तिलोयपण्णत्ती' आदि में वीरनिर्वाणानुसार ही कालगणना ३०८ तृतीय प्रकरण-आचार्य हस्तीमल जी के दो मतों का निरसन ३१० १. प्रथम मत : कुन्दकुन्द-काल ५वीं शती ई० ३१० ३०६ ३०६ ३०७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004043
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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