SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७४ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड २ अ०८/प्र०४ ४.१. भट्टारक-दीक्षाविधि द्वारा भट्टारकपद पर प्रतिष्ठापन भट्टारक वही पुरुष कहलाता है, जिसकी स्थानविशेष, जातिविशेष, संघविशेष अथवा गण-गच्छ-विशेष के भट्टारकपीठ पर आसीन होने के लिए भट्टारक-दीक्षा होती है। दीक्षा का अधिकारी आरम्भ में तो कोई पासत्थ-कुसील मुनि होता था, किन्तु बाद में गृहस्थ को ही भट्टारक-पट्ट पर अभिषिक्त किया जाने लगा। ४.२. अजिनोक्त-सवस्त्रसाधुलिंग ग्रहण भट्टारकपद पर दीक्षित होने के लिए गृहस्थ को पहले दिगम्बरमुनि का रूप धारण करना पड़ता है अर्थात् वह नग्न होता है, पिच्छी-कमण्डलु ग्रहण करता है और केशलोच करता है। इस रूप में दीक्षित होने के पश्चात् श्रावकों के आग्रह करने पर वह उनके द्वारा लाये गये वस्त्र धारण कर लेता है, किन्तु पिच्छीकमण्डलु का त्याग नहीं करता। इस कारण उसका वेश न दिगम्बरमुनि जैसा होता है, न एलकक्षुल्लक एवं सामान्य श्रावक जैसा। वह एक नये प्रकार के जैनेतर साधु-सदृश दिखाई देता है। इस अजिनोक्त-सवस्त्रसाधु-लिंग को धारण करने के बाद वह विधिवत् भट्टारक बन जाता है। भट्टारकगण वस्त्रधारण करने के बाद भी कभी-कभी अल्पसमय के लिए नग्न हो जाते हैं, जैसे भोजन के समय तथा प्रत्येक चातुर्मास के प्रथम दिन। वे मुनि के समान ही करपात्र में भोजन करते हैं।९२ भट्टारकदीक्षा के इस स्वरूप की पुष्टि वि० सं० १८८० में असाढ़ बदि १०वीं बृहस्पतिवार के दिन भट्टारक श्री सुखेन्द्रकीर्ति के पट्ट पर भट्टारक श्री नरेन्द्रकीर्ति के अभिषेक के निम्नलिखित विवरण से होती है, जो राजस्थानी भाषा में है "मिति असाढ़ वदि १० वीसपतवार नै पदस्थ हुवो। तेरा घड़ी दिन चढ्या नैणसुखजी पंडित छा ज्यांह नै सो नैणसुखजी छ्यौर कराय मंदिर पाटोधी का चोक नै जाय विराज्या केसरया कपडा गहैण सुधा (सहित) पाछै द्वादशानुप्रेक्षा को चिंतवन कीयो। पाछै पंडिता आय समोध्या (सम्बोधित किया) यो धर्म आपको छै। पाछै सारा कपड्या नाष्या (उतार दिये) नगन हुआ पाछै पाषाण की चौकी उपरि जाय विराज्या। पाषाण की चौकी उपरि मंडल माड्यो सुहागणी लुगाई। सिंह के उपरि विराज्या रया। नगन (नग्न) बैठ्या बैठ्या श्रुतभक्ति, चारित्रभक्ति योगभक्ति पढवो करया। पाछै पांच पंच आया वकसी किरपाराम जी दि० (दीवान) संगही आर्तरामजी साह जैतरामजी दि० (दीवान) भीमचंद ९२. क-पं० नाथूराम प्रेमी / जैनहितैषी / भाग ८/ अंक २/मार्गशीर्ष, वीर नि० सं० २४३२ / पृष्ठ ५८। ख-पं० दीपचन्द वर्णी : भट्टारकमीमांसा / पृ.५ / वीरजयन्ती २४५४ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004043
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy