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________________ ६४ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड २ अ०८ / प्र० ४ अनुवाद - " संवत् १२१६ माघ सुदी त्रयोदशी शुक्रवार के दिन श्रीमत्कुटकान्वय में प्रसूत पंडित श्री मंगलदेव, उनके शिष्य भट्टारक पद्मदेव, उनके शिष्य---ने (प्रतिष्ठा करायी । " (डॉ० कस्तूरचन्द्र जैन सुमन के उपर्युक्त ग्रन्थ से उद्धृत / लेख क्र० १६० / पृष्ठ १७८)। दिगम्बरजैन बड़ा मन्दिर, छतरपुर (म.प्र.) में संवत् १२७२ के श्री ऋषभनाथप्रतिमालेख में भट्टारक श्री धर्मचन्द्र जी के निर्देशन में छतरपुरवासी सहनिका वीसलचन्द्र और भारीनाथ के द्वारा उक्त प्रतिमा के प्रतिष्ठापित किये जाने का वर्णन है— 'सं० १२७२ वर्षे माघसुदी ५ श्री मूलसंघ सरस्वतीगच्छ भट्टारक श्री धर्मचन्द्र जी सहनिका वीसलचन्द्र भारीनाथ सातासारग उरणथता श्री राजराव हमीरदेव ।' ( कमलकुमार जैन : जिनमूर्ति - प्रशस्ति - लेख / क्र.४/पृ.२६)। इसी मन्दिर में इन्हीं भट्टारक जी के प्रतिष्ठाविधि - निर्देशन में संवत् १२७२ में भगवान् पार्श्वनाथ और नेमिनाथ की प्रतिमाओं के प्रतिष्ठापित किये जाने के प्रतिमालेख उपलब्ध हैं।८४ छतरपुर (म.प्र.) के इसी दिगम्बर जैन बड़ा मन्दिर में उपलब्ध संवत् १३१० के एक यंत्रलेख में भट्टारक श्री नरेन्द्रकीर्ति का इस प्रकार उल्लेख है · - 'संवत् १३१० माह सुदी ५ गुरौ मूलकलंकणेरनन्द्याम्नाये बलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे कुन्दकुन्दाचार्य्याम्नाये भट्टारक स्त्री नरेंद्रकीर्ति तदाम्नाये खण्डेलवालान्ये (न्वये ) सादगोत्रे संसक पाटणी गोत्रे संपतदास प्रतिष्ठाप्पां (यां ) अजमेर गोत्रे श्रावक स्त्री नित्यं प्रणम (मं ) ति । ' अनुवाद - " संवत् १३१० माघ सुदी पंचमी गुरुवार को मूलसंघ के अकलंक (निष्कलंक) नन्दी आम्नाय, बलात्कारगण, सरस्वतीगच्छ, कुन्दकुन्दान्वय में भट्टारक श्री नरेन्द्रकीर्ति, उनके आम्नाय में खंडेलवाल - अन्वय और सादगोत्र के संसक, पाटनीगोत्र के संपतदास तथा अजमेरागोत्र के श्रावक श्री ( प्रतिष्ठा कराकर ) नित्य प्रणाम करते हैं। " --- (डॉ० कस्तूरचन्द्र जैन 'सुमन' के उपर्युक्त ग्रन्थ से उद्धृत । लेख क्र० २६७ / पृ. २६९। यह यंत्रलेख श्री कमलकुमार जैन के 'जिनमूर्ति - प्रशस्तिलेख' ग्रन्थ में पृष्ठ ६८ पर संकलित है ।) ८४. कमलकुमार जैन : जिनमूर्ति- प्रशस्ति - लेख / क्र. ५ एवं ६ / पृ. २६ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004043
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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