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ग्रन्थसार
[तिरानवे] कुन्दकुन्द का पट्टारोहणकाल वीर-निर्वाण सं० १००० अर्थात् विक्रम संवत् ५३० (४७३ ई०) के लगभग है। ऐसा मानने पर वह इण्डियन ऐण्टिक्वेरी-पट्टावली में बतलाये गये पट्टारोहणकाल वि० सं० ४९ से ४८१ वर्ष आगे चला जाता है। इस स्थिति में कुन्दकुन्द के पूर्ववर्ती और उत्तरवर्ती सभी पट्टधरों का पट्टारोहणकाल ४८१ वर्ष आगे बढ़ जाता है, क्योंकि पट्टावली में दर्शायी गयी पट्टपरम्परा निर्धारित पट्टकालावधि के अन्तराल के साथ एक-दूसरे पट्टधर से जुड़ी हुई है। किन्तु ४८१ वर्ष आगे बढ़े हुए काल में उन पट्टधरों का अस्तित्व ही नहीं था और उनके पट्टपीठ भी समाप्त हो गये थे, यह उसी इण्डियन ऐण्टिक्वेरी-पट्टावली से सिद्ध है। तथा चित्तौड़पट्ट और नागौरपट्ट के ३९ पट्टधरों का पट्टारोहणकाल विक्रमसंवत् १५८६ (१५२९ ई०) से लेकर वि० सं० १९४० (१८८३ ई०) तक है। इन सबका पट्टारोहणकाल ४८१ वर्ष आगे बढ़ जाने पर इनका अभी (ई० सन् २००८ में) जन्म लेना ही घटित नहीं होता। (अध्याय ८/ प्र.३ / शी.६)। इससे सभी पट्टधरों का अस्तित्व मिथ्या हो जाता है। उक्त (इण्डियन ऐण्टिक्वेरी की) पट्टावली में वर्णित पट्टधरों का अस्तित्व एवं पट्टारोहणकाल युक्तिसंगत एवं सत्य तभी सिद्ध हो सकता है, जब आचार्य कुन्दकुन्द का पट्टारोहणकाल वही माना जाय, जो उसमें वर्णित है। अन्य पट्टावलियों और शिलालेखों से इण्डियन ऐण्टिक्वेरी-पट्टावली में उल्लिखित पट्टधरों के अस्तित्व की पुष्टि होती है। (अध्याय ८/ प्र.३ / शी.६)। अतः आचार्य कुन्दकुन्द का पट्टारोहणकाल वही मानना अनिवार्य है, जो इण्डियन ऐण्टिक्वेरी-पट्टावली में निर्दिष्ट है।
४. इण्डियन ऐण्टिक्वेरी-पट्टावली की आधारभूत पट्टावलियों में मुनिसंघ के आचार्य को एवं भट्टारकपीठ के प्रमुख को 'पट्ट' एवं 'पट्टस्थ' (पट्टधर) शब्दों से अभिहित किया गया है। प्रो० हार्नले ने उनका अँगरेजी-अनुवाद Pontiff किया है, जिसका अर्थ है 'धर्मगुरु', किन्तु 'तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्यपरम्परा' के लेखक डॉ० नेमिचन्द्र जी शास्त्री, ज्योतिषाचार्य ने प्रो० हार्नले द्वारा अँगरेजी में प्रस्तुत पट्टावली के स्वकृत हिन्दी-अनुवाद में Pontiff के स्थान में पट्टाधीश शब्द का प्रयोग कर दिया है। इस ‘पट्टाधीश' शब्द को आचार्य हस्तीमल जी ने पट्टावली के मूलपाठ में प्रयुक्त मानकर 'अधीश' शब्द के प्रयोग से यह मान लिया है कि वह भट्टारकसम्प्रदाय की पट्टावली है। उन्होंने यह तर्क भी दिया है कि उक्त पट्टावली में जिन पट्टधरों के नाम उल्लिखित हैं, उन्हें भट्टारक-परम्परा के बलात्कारगण ('भट्टारकसम्प्रदाय'। पृष्ठ ९३) की पट्टावली में और अनेक शिलालेखों में भट्टारक कहा गया है। (अध्याय ८/ प्र.२ / शी.१)।
___ आचार्य श्री हस्तीमल जी ने मूल में भूल की है। 'दि इण्डियन ऐण्टिक्वेरी' में प्रकाशित तालिकाबद्ध पट्टावली की आधारभूत पट्टावलियों में न तो 'पट्टाधीश' शब्द
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