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[अस्सी]
जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १ शिवभूति को दिगम्बरजैन-सम्प्रदाय का संस्थापक बतलाया गया है। किन्तु यथार्थ यह है कि शिवभूति न तो यापनीयमत का प्रवर्तक था, न ही दिगम्बरजैनमत का संस्थापक, उसने तो श्वेताम्बरमत छोड़कर जिनेन्द्रप्रणीत परम्परागत दिगम्बरमत का वरण किया था। यह उसके ही वचनों से सिद्ध है। वह अपने गुरु के सचेल-स्थविरकल्प-समर्थक तर्कों का विरोध करते हुए कहता है-"परलोकार्थी (मोक्षार्थी) को अचेल जिनकल्प ही ग्रहण करना चाहिए, कषाय, भय, मूर्छादि दोषों के कारणभूत सपरिग्रह सचेल स्थविरकल्प से क्या लाभ? यह अनर्थकर है, इसीलिए श्रुत में परिग्रहरहित (अचेल) जिनकल्प का उपदेश दिया गया है। जिनेन्द्र भी अचेल होते हैं। अतः अचेलता ही सुन्दर (हितकर) है।" इन्हीं श्रुतवचनों एवं जिनेन्द्रदेव के अचेलत्व का अनुसरण करते हुए शिवभूति ने नाग्न्यलिंग ग्रहण किया था। इससे सिद्ध है कि उसने किसी नये मत का प्रवर्तन नहीं किया था, अपितु जिनप्रणीत परम्परागत दिगम्बरमत को ही अंगीकार किया था। (अध्याय २/प्र.२ / शी.५)।
७. श्वेताम्बराचार्य हस्तीमल जी की मान्यता है कि यापनीयसंघ की उत्पत्ति दिगम्बरसंघ से हुई थी, क्योंकि अभिलेखों में दोनों के गण-गच्छ समान मिलते हैं, जैसे-मूलसंघ, श्रीमूल-मूलसंघ, कनकोत्पलसंभूतसंघ, पुन्नागवृक्षमूलसंघ, कुन्दकुन्दान्वय, कण्डूगण, क्राणूगण आदि। (अध्याय ७/प्र.१ / शी.५)।
किन्तु , इनमें से केवल 'पुन्नागवृक्षमूलगण', जिसे आचार्य हस्तीमल जी ने 'गण' न कहकर 'संघ' कहा है, दिगम्बरपरम्परा और यापनीयपरम्परा में समान था, शेष नहीं। शेष में से श्रीमूल-मूलसंघ, कनकोत्पलसंभूतसंघ और कण्डूगण केवल यापनीयपरम्परा में थे और मूलसंघ, कुन्दकुन्दान्वय एवं क्राणूगण केवल दिगम्बर-परम्परा में। (अध्याय ७/प्र.३/शी.३,४)। अतः केवल एक 'पुन्नागवृक्षमूलगण' नाम की समानता इस निर्णय का युक्तियुक्त हेतु नहीं है कि यापनीयसंघ की उत्पत्ति दिगम्बरसंघ से हुई थी। समानता को देखा जाय, तो यापनीयसंघ की सैद्धान्तिक और सांस्कृतिक समानता दिगम्बरसंघ की अपेक्षा श्वेताम्बरसंघ से अधिक थी। जैसे सिद्धान्त और संस्कृति की अधिक समानता के कारण श्वेताम्बरजैन सम्प्रदाय की उत्पत्ति, निर्ग्रन्थ (दिगम्बर) सम्प्रदाय से ही सिद्ध होती है, बौद्धसम्प्रदाय से नहीं, जैसे उक्त समानता के कारण स्थानकवासी श्वेताम्बरसम्प्रदाय का उद्भव मूर्तिपूजक श्वेताम्बरसम्प्रदाय से ही सिद्ध होता है, दिगम्बरजैनसम्प्रदाय से नहीं, वैसे ही सवस्त्रमुक्ति, स्त्रीमुक्ति, गृहस्थमुक्ति, परतीर्थिकमुक्ति, केवलिभुक्ति आदि सिद्धान्तों एवं 'धर्मलाभ' कहकर आशीर्वाद देने आदि-रूप संस्कृति की अत्यन्त समानता के कारण यापनीयसम्प्रदाय का जन्म श्वेताम्बरसम्प्रदाय से ही सिद्ध होता है, दिगम्बरसम्प्रदाय से नहीं। (अध्याय ७/प्र.१ / शी.५)। यापनीयसम्प्रदाय ने 'यापनीय' नाम भी श्वेताम्बर-आगमों से ग्रहण किया था। (अध्याय ७/प्र.१/ शी.७)।
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