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५८४ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १
अ०७/प्र०४ लक्षण वर्तमान हैं। शेष आधे लक्षण प्राचीन शौरसेनी के हैं। इन दोनों भाषाओं के मेल से निष्पन्न अर्धमागधी भाषा है।" (वही/ पृ.३७)।
___ डॉ० नेमिचन्द्र जी शास्त्री निष्कर्ष प्रस्तुत करते हुए कहते हैं-"उपलब्ध अर्धमागधी का स्वरूपगठन मागधी और प्राचीन शौरसेनी के मिश्रण के आधार पर किया गया है। पर भगवान् महावीर का उपदेश जिस अर्धमागधी में होता था, वह अर्धमागधी यह नहीं है। उस प्राचीन अर्धमागधी का स्वरूप अनेक भाषाओं के मिश्रण से तैयार हुआ था। अर्धमागधी शब्द स्वयं ही इस बात का सूचक है कि इसके स्वरूप में आधे लक्षण मागधी के तथा आधे इतर भाषाओं के मिश्रित थे। जिनसेनाचार्य ने इस भाषा की विशेषता पर प्रकाश डालते हुए कहा है
त्वहिव्यवागियमशेषपदार्थगर्भा भाषान्तराणि सकलानि निदर्शयन्ती। तत्त्वावबोधमचिरात् कुरुते बुधानां स्याद्वादनीति विहितान्धमतान्धकारा॥
आदिपुराण २३/१५४। "अर्थात् यह भाषा अर्धमागधी समस्त भाषाओं के रूप का परिणमन करती है। इसमें अनेक भाषाओं का मिश्रण होने से शीघ्र ही तत्त्वज्ञान को समझ लेने की शक्ति वर्तमान है। यह स्याद्वादरूपी नीति के द्वारा समस्त विवादों का निराकरण करनेवाली है।
"अत एव यह स्पष्ट है कि प्राचीन शौरसेनी या जैनशौरसेनी उपलब्ध अर्धमागधी की अपेक्षा प्राचीन है और इसका प्रचार पूर्व, पश्चिम और दक्षिण भारत में सर्वत्र था।" (वही/पृ.४४)।
प्राकृतभाषा एवं जैनविद्या के सुप्रसिद्ध विद्वान् डॉ० हीरालाल जी जैन लिखते हैं-"उपर्युक्त (आचारांगादि) ४५ आगमग्रन्थों की भाषा अर्धमागधी मानी जाती है। अर्द्धमागधी का अर्थ नाना प्रकार से किया जाता है-जो भाषा आधे मगधप्रदेश में बोली जाती थी अथवा जिसमें मागधी भाषा की आधी प्रवृत्तियाँ पाई जाती थीं। यथार्थतः ये दोनों ही व्युत्पत्तियाँ सार्थक हैं, और इस भाषा के ऐतिहासिक स्वरूप को सूचित करती हैं। मागधी भाषा की मुख्यतः तीन विशेषताएँ थीं- १. उसमें र का उच्चारण ल होता था, २. तीनों प्रकार के ऊष्म ष, स, श वर्गों के स्थान पर केवल 'श' ही पाया जाता था; और ३. अकारान्त कर्ताकारक एकवचन का रूप 'ओ' के स्थान पर 'ए' प्रत्यय द्वारा बनता था। इन तीन मख्य प्रवृत्तियों में से अर्द्ध-मागधी में कर्त्ताकारक की एकारविभक्ति बहुलता से पायी जाती है। र का ल क्वचित् ही होता है, तथा तीनों सकारों के स्थान पर तालव्य 'श'-कार न हो, दन्त्य 'स'-कार ही होता है। इस प्रकार इस भाषा में मागधी की आधी प्रवृत्तियाँ कहीं जा सकती हैं। इसकी शेष
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