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अ०७/प्र०३
यापनीयसंघ का इतिहास / ५७३ सिद्धान्तोंवाले श्वेताम्बरसंघ की उत्पत्ति हुई थी, किन्तु निर्ग्रन्थसंघ भगवान् महावीर द्वारा उपदिष्ट सिद्धान्तों का यथावत् अनुगामी बना रहा, इसलिए उसका मूलसंघ नाम प्रचलित
हुआ।
निर्ग्रन्थ ( दिगम्बर ) संघ की प्राचीनता की स्वीकृति डॉ० सागरमल जी ने ऊपर निर्ग्रन्थसंघ को ही मूलसंघ सिद्ध करते हुए ईसापूर्व चौथी शताब्दी में श्रुतकेवली भद्रबाहु के नेतृत्व में दक्षिण गये निर्ग्रन्थसंघ की वे ही (सवस्त्रमुक्ति-निषेध आदि) सैद्धान्तिक विशेषताएँ बतलायी हैं, जो वर्तमान में दिगम्बरसम्प्रदाय में मिलती हैं। सन् २००४ ई० में लिखे गये अपने नये ग्रन्थ 'जैनधर्म की ऐतिहासिक विकासयात्रा' में तो उन्होंने स्पष्ट शब्दों में स्वीकार किया है कि ईसापूर्व चतुर्थ शती में भद्रबाहु के नेतृत्व में दक्षिण गया निर्ग्रन्थसंघ ही आज की दिगम्बरपरम्परा का पूर्वज है। (देखिए , अध्याय ६ / प्रकरण २/ शीर्षक २)। इस प्रकार उन्होंने दिगम्बर-परम्परा का अस्तित्व भगवान् महावीर के युग से ही स्वीकार किया है। अतः उन्होंने अन्यत्र (जै.ध. या.स./ पृ.३९४ पर) जो यह माना है कि उसका प्रवर्तन विक्रम की छठी शताब्दी में आचार्य कुन्दकुन्द ने किया था, वह उनके ही वचनों से असत्य सिद्ध हो जाता है।
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