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________________ चतुर्थ यापनीयसंघ की अन्य विशेषताएँ १ मन्दिरनिर्माण एवं मूर्तिप्रतिष्ठा शिलालेखों से ज्ञात होता है कि यापनीय साधु और उनके भक्तों ने अनेक जैनमन्दिरों का निर्माण तथा जिनमूर्तियों की प्रतिष्ठा करायी थी। जिनमूर्तियाँ दिगम्बरमुद्रा में होती थीं। “बेलगाँव की 'दोड्ड वसदि' (इस नाम के जैनमन्दिर) में भगवान् नेमिनाथ की प्रतिमा है, जो किसी समय किले के मन्दिर में थी। इसमें जो पीठिकालेख है, उससे पता चलता है कि यापनीयसंघ के पारिसय्य ने १०१३ ई० में इस मन्दिर का निर्माण कराया था, जिसे साहणाधिपति (संभवतः कदम्बशासक जयकेशी के दण्डनायक) की माता कत्तय्य और जक्कव्वे ने कल्लहविळ ( गोकम के पास ) ग्राम की भूमि दान में दी थी। उपर्युक्त विवरण से ज्ञात होता है कि पारिसय्य साधु या गुरु नहीं थे, अपितु कोई सामान्यजन थे, जिनके यापनीयसंघ से घनिष्ठ सम्बन्ध रहे होंगे, इसीलिए उनका विशेषतया उल्लेख किया गया है । १९५८ इस मन्दिर की यापनीयों द्वारा प्रतिष्ठित प्रतिमा आजकल दिगम्बरों द्वारा पूजी जाती है । ( प्रेमी : जै. सा. इ./प्र.सं./पृ. ४२) । २ यापनीय साहित्य यापनीयसंघ में श्वेताम्बर - परम्परा के आगम मान्य थे। डॉ० सागरमल जी के अनुसार " आचारांग, सूत्रकृतांग, ज्ञाताधर्मकथा, उत्तराध्ययन, दशवैकालिक, दशा श्रुतस्कन्ध, बृहत्कल्प, निशीथ, जीतकल्प, व्यवहार, आवश्यक आदि आगम तथा इन आगमों की निर्युक्तियाँ, मरणविभक्ति, संस्तारक, संग्रह, स्तुति ( देविन्दथुई), प्रत्याख्यान ( आतुर एवं महाप्रत्याख्यान) आदि प्रकीर्णक तथा कर्मप्रकृति (कम्मपयडी) आदि कर्मसाहित्य के ग्रन्थ हैं। इन आगमिक ग्रन्थों के अध्ययन-अध्यापन और स्वाध्याय की परम्परा यापनीयों में थी।" (जै. ध. या. सं. / पृ. ६८ ) । श्रुतसागरसूरि ने भी लिखा है कि यापनीय कल्पसूत्र का वाचन करते हैं। (दंसणपाहुडटीका / गा. ११) । माननीय पं० नाथूराम जी प्रेमी लिखते हैं- " श्वेताम्बरसम्प्रदाय-मान्य जो आगमग्रन्थ हैं, यापनीयसंघ शायद उन सभी को मानता था ।" (जै. सा. इ. / प्र.सं./पृ.४५) । १५८. डॉ० ए० एन० उपाध्ये : 'जैन सम्प्रदाय के यापनीयसंघ पर कुछ और प्रकाश' / ' अनेकान्त / महावीर निर्वाण विशेषांक / १९७५ ई. / पृ. २४७ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004042
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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