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५६८ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १
अ०७/प्र०३ तात्पर्य यही है कि ग्यारहवीं शताब्दी में अपने को मूलसंघी कहने की एक होड़ लगी हुई थी।" (डॉ. सा. म. जै. अभि. ग्र./पृ. ६३२)।
यद्यपि यापनीय आदि जैनाभास-संघों के साथ मूलसंघ विशेषण ग्यारहवीं शताब्दी ई० के बाद के शिलालेखों में भी देखने में नहीं आया, तथापि भविष्य में कभी कोई ऐसा शिलालेख मिल जाय, जिसमें उक्त जैनाभास-संघों के साथ मूलसंघ नाम प्रयुक्त हो, तो उसका कारण यही हो सकता है, जो मान्य विद्वान् ने अपने उपर्युक्त कथन में बतलाया है। इस कथन से मान्य विद्वान् ने यह स्वीकार कर लिया है कि आचार्य कुन्दकुन्द से जुड़ा मूलसंघ ही मौलिक मूलसंघ है, अन्य संघों ने प्रतिक्रिया-स्वरूप ही अपने साथ 'मूलसंघ' नाम जोड़ा है। आचार्य कुन्दकुन्द ईसापूर्व प्रथम शताब्दी के उत्तरार्ध एवं ईसा की प्रथम शताब्दी के पूर्वार्ध में हुए थे (देखिए, दशम अध्याय), अतः यह स्वतः सिद्ध हो जाता है कि उनके बाद सन् ३७० ई० एवं ४२५ ई० की नोणमंगल-ताम्रपट्टिकाओं में उल्लिखित मूलसंघ आचार्य कुन्दकुन्द से ही सम्बद्ध निर्ग्रन्थसंघ है। ___इस प्रकार मान्य विद्वान् के ही वचन उनकी तथा मुनि कल्याणविजय जी की इस कपोलकल्पना को कपोलकल्पना सिद्ध कर देते हैं कि यापनीयसंघ का पूर्वनाम मूलसंघ था। जब मान्य विद्वान् की कल्पना के अनुसार यापनीयसंघ ने ११ वीं शती ई० से अपने साथ 'मूलसंघ' विशेषण जोड़ना शुरू किया, तब उसका पूर्वनाम 'मूलसंघ' कैसे हो सकता है? यह तो परवर्ती नाम ही माना जा सकता है।
___मान्य विद्वान् (डॉ० सागरमल जी) के एक दूसरे तर्क से भी मूलसंघ को यापनीयसंघ सिद्ध करनेवाले उनके पूर्वोक्त तर्क धराशायी हो जाते हैं। उनका कथन है कि "यापनीय ग्रन्थों के साथ लगा हुआ 'मूल' विशेषण जैसे मूलाचार, मूलाराधना आदि भी इस तथ्य के सूचक हैं कि 'मूलसंघ' शब्द का सम्बन्ध यापनीयों से रहा है।" (डॉ. सा. म. जै. अभि. ग्र./ पृ. ६३३)।
___ मान्य विद्वान् का यह कथन सर्वथा सत्य है कि 'मूलाचार' और 'मूलाराधना' (भगवती-आराधना) ग्रंथों के नाम के साथ जुड़ा हुआ 'मूल' विशेषण उनके मूलसंघीय होने का सूचक है। परन्तु इन ग्रन्थों को यापनीयग्रन्थ मानना सत्य नहीं है। ये दोनों ग्रन्थ सर्वथा दिगम्बर-ग्रन्थ हैं, इसके प्रमाण 'भगवती-आराधना' एवं 'मूलाचार' नामक १३वें और १५वें अध्यायों में द्रष्टव्य हैं। अतः दिगम्बर-ग्रन्थों के नाम के साथ 'मूल' विशेषण जुड़ा होने से सिद्ध है कि 'मूलसंघ' निर्ग्रन्थसंघ (दिगम्बरसंघ) का ही दूसरा नाम है।
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