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________________ अ०७/प्र०३ यापनीयसंघ का इतिहास / ५६५ हुआ। पर लेख नं० २५० (सन् ११०८) में पुन्नागवृक्षमूलगण को हम मूलसंघ के अन्तर्गत जीवित पाते हैं। संभव है पीछे वह मूलसंघ द्वारा आत्मसात् कर लिया गया हो।" किन्तु डॉ० चौधरी की इस प्रस्तावना के लिखे जाने. (१९५७ ई०) के बाद डॉ० ए० एन० उपाध्ये (१९७३ ई०) एवं प्रो० विद्याधर जोहरापुरकर (१९६५ ई०) ने सन् ११६५ और उसके बाद के कुछ अभिलेखों का विवरण दिया है, जिनमें यापनीयसंघ-पुन्नागवृक्षमूलगण का उल्लेख है। (देखिए , प्रस्तुत अध्याय की पा. टि. १४०-१४२)। इससे ज्ञात होता है कि यापनीयसंघ का पुन्नागवृक्षमूलगण सन् ११०८ ई० के बाद भी विद्यमान था, वह मूलसंघ के द्वारा आत्मसात् नहीं किया गया था, अपितु मूलसंघ का पुन्नागवृक्षमूलगण अपना अलग था। इस प्रकार मूलसंघ के साथ पुन्नागवृक्षमूलगण का उल्लेख होने से यह सिद्ध नहीं होता कि यापनीयसंघ ही मूलसंघ था। __मूलसंघीय नन्दिसंघ से भेद प्रदर्शित करने के लिए यापनीयों ने अपने नन्दिसंघ के साथ भी ‘यापनीयसंघ' विशेषण प्रयुक्त किया है, यथा "श्रीयापनीय-नन्दिसंघ-पुन्नागवृक्षमूलगणे श्रीकित्याचार्यान्वये---।"१०० क्राणूर या काणूर गण मूलसंघ का ही गण था जहाँ तक क्राणूगण का सम्बन्ध है, वह केवल मूलसंघ का ही गण था, यापनीयसंघ में क्राणूगण नहीं अपितु कण्डूगण था, जो कहीं-कहीं 'काण्डूर्' या 'काडूर्' भी लिखा गया है। नीचे उद्धृत १२वीं सदी के लेखांश में यापनीयसंघ के साथ कण्डूर्गण का ही उल्लेख है-"यापनीयसंघप्रतीतकण्डूगणाब्धिचन्द्रमरेंदी---।" १४५ - इसके अतिरिक्त १३वीं सदी के अदरगुंचि (धारवाड़, मैसूर) के कन्नड़ अभिलेख में भी यापनीयसंघ के साथ काडूगण का ही नाम है।१४६ काणूगण के साथ यापनीयसंघ का निर्देश किसी भी अभिलेख में नहीं है, सर्वत्र मूलसंघ का ही उल्लेख है। जहाँ उसके साथ मूलसंघ का उल्लेख नहीं है, वहाँ, उसकी गुर्वावली मूलसंघ के आचार्यों से मिलती है। यथा १४४. जैन शिलालेख संग्रह / माणिकचन्द्र / भाग २ कडब-लेख क्र. १२४ / ८१२ ई. । १४५. जैन शिलालेख संग्रह / भारतीय ज्ञानपीठ / भाग ४ / हूलि-लेख क्र. २०७ / १२वीं सदी पूर्वार्ध। १४६. वही / अदरगुंचि-लेख क्र. ३६८ / १३वीं सदी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004042
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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