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________________ तृतीय प्रकरण यापनीयसंघ का पूर्वनाम मूलसंघ नहीं 'मूलसंघ' निर्ग्रन्थसंघ का नामान्तर एकान्त-अचेलमुक्तिवादी निर्ग्रन्थसंघ (वर्तमान दिगम्बरजैन-संघ) और मूलसंघ पर्याय-वाची हैं। अन्तर केवल यह है कि 'निर्ग्रन्थसंघ' नाम तो निर्ग्रन्थ भगवान् महावीर के युग से चला आ रहा है, किन्तु उसका 'मूलसंघ' नाम तब पड़ा, जब उससे मुनियों के एक वर्ग ने अलग होकर श्वेतपटसंघ की स्थापना कर ली। शिलालेखों में 'मूलसंघ' नाम का सबसे प्राचीन उल्लेख ३७० ई० और ४२५ ई० के नोणमंगल-ताम्रपत्रलेखों में मिलता है। वे इस प्रकार हैं १. "श्रीमता माधववर्मा-महाधिराजेन आत्मनः श्रेयसे --- आचार्य्यवीरदेवस्य - --उपदेशनात् मृदुकोत्तूरविषये पेब्बोलल्-ग्रामे अर्हदायतनाय मूलसंधानुष्ठिताय महातटाकस्य अधस्तात् द्वादशखण्डुकावापमात्रक्षेत्रं च तोट्टक्षेत्रं च पटुक्षेत्रं च कुमारपुरग्रामश्च --- दत्तः।" (नोणमंगल-ताम्रपट्टिकालेख/ क्र. ९०/३७० ई./ जै. शि. सं./ मा. च./ भा.२)। अनुवाद-"श्रीमान् माधववर्मा महाधिराज (द्वितीय) ने अपने कल्याण के लिए आचार्य वीरदेव के उपदेश से मृदुकोत्तूर-प्रदेश के पेब्बोलल् ग्राम में मूलसंघ द्वारा प्रतिष्ठापित जिनालय को द्वादश खण्डुकावाप-प्रमाण क्षेत्र (भूमि), तोट्टक्षेत्र, पटुक्षेत्र तथा कुमारपुर ग्राम दान किया।" ..२. "श्रीमता कोङ्गणिवर्म-धर्म-महाधिराजेन आत्मनः श्रेयसे --- स्वोपाध्यायस्य परमाहतस्य विजयकीर्तेः --- उपदेशतः चन्द्रनन्द्याचार्य-प्रमुखेन मूलसंघेनानुष्ठिताय उरनूरार्हतायतनाय कोरिकुन्दविषये वेन्नैल्करनिग्रामः --- दत्तः।" (नोणमंगल-ताम्रपट्टिकालेख / क्र. ९४/४२५ ई./जै. शि. सं./ मा. च./भा २)। अनुवाद-"श्रीमान् कोङ्गणिवर्मा महाधिराज (द्वितीय) ने आत्मकल्याण के लिए अपने गुरु परम जिनभक्त विजयकीर्ति के उपदेश से चन्द्रनन्दी आदि आचार्य-प्रधान मूलसंघ द्वारा प्रतिष्ठापित उरनूर के जिनालय को कोरिकुन्द-प्रदेश में वेन्नैल्करनि ग्राम प्रदान किया।" इन अभिलेखों से प्रकट है कि एकान्त-अचेलमुक्तिवादी निर्ग्रन्थसंघ (वर्तमान दिगम्बर जैनसंघ) का पर्यायवाची 'मूलसंघ' शब्द ३७० ई० के पूर्व से प्रचलित था। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004042
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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