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अ०७/प्र०२
यापनीयसंघ का इतिहास / ५४३ "यह ठीक है कि चेटक के नाम से किसी वंश का अस्तित्व कहीं उल्लिखित नहीं देखा गया, पर इस खारवेल के लेख और थेरावली के संवाद से यह मानने में क्या आपत्ति है कि इस उल्लेख से ही चेटकवंश का अस्तित्व सिद्ध हो रहा है? चेटक की युद्ध-निमित्तक मृत्यु हुई, उसकी राजधानी वैशाली का नाश हुआ और चेटक के वंशजों का अधिकार विदेह राज्य पर से उठ जाने के बाद वहाँ गणराज्य हो गया। इन कारणों से पिछले समय में चेटक और उसके वंश की अधिक प्रसिद्धि न रहने से उस की चर्चा ग्रन्थों में न मिलती हो, तो इससे सशंक होने की क्या जरूरत है? चेटक बड़ा धर्मी राजा था, उसने शरणागत की रक्षा के निमित्त ही मगधपति कोणिक के साथ लड़ाई लड़ी थी और अन्त तक
सने अपना वीरोचित समाधिमरण किया था। इस दशा में चेटक की कीर्ति और उसका महत्त्व उसके पुत्र शोभनराज की संतान के लिये एक गौरव का विषय हो, इसमें क्या अनुचित है? शोभनराज भाग निकला और उसने अपनी हीनता साबित की, यह मान लेने पर भी चेटक की महत्ता में कुछ भी हीनत्व नहीं आता। अगर खारवेल सचमुच ही इस कीर्तिशाली चेटक का वंशज हो, तो वह बड़े गौरव के साथ अपने पूर्वज का नाम ले सकता है।
"इस कथन में भी कुछ प्रमाण नहीं है कि चेटक 'लिच्छिवि' वंश का पुरुष था। मुझे ठीक स्मरण तो नहीं है, पर जहाँ तक ख्याल है, श्वेताम्बर-सम्प्रदाय के पुराने साहित्य में चेटक का 'हैहय' अथवा इससे मिलता-जुलता कोई वंश बताया गया है।१२२ पर 'लिच्छिवि' वंश तो किसी जगह नहीं लिखा। हाँ, उस के समय में वहाँ 'लिच्छिवि' लोगों की एक शक्तिशाली जाति थी, उसके कई जत्थे थे और प्रत्येक जत्थे पर एक एक जत्थेदार-गणनायक नियत था। पर इसका अर्थ यह नहीं है कि वे जत्थेदार अथवा गणनायक बिलकुल स्वतंत्र थे। सिर्फ अपने गणों के आन्तरिक कार्यों में ही उनकी स्वतंत्रता परिमित थी। राज्य-कारोबार में वे सब चेटक के मातहत थे, दुर्दैवयोग से कोणिक के साथ की आखिरी लड़ाई के समय विदेह की 'लिच्छिवि'
और 'वज्जी' नामक दो प्रबल जातियों में से दूसरी जाति ने चेटक को धोखा दे दिया, वह कोणिक के साथ मिल गई और काशी तथा कोसल के १८ गण-राजों के साथ चेटक की हार हो गई।१२३ इस अपमान के मारे उसने अनशन करके देह छोड़ दिया। १२२. "जहाँ तक मुझे याद है, यह बात 'निरयावली' सूत्र में है। इस फिकरे को मैंने
नोट तक किया है, लेकिन इस वक्त न तो मेरे पास 'निरयावली' सूत्र है और न
उसका नोट ही।" लेखक। १२३. "चेटक और कोणिक की यह लड़ाई जैनसूत्रों में 'महाशिला-कण्टक' इस नाम से
वर्णित है। इस लड़ाई में किसकी जीत हुई और किसकी हार? यह प्रश्न करके उत्तर
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