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५४४ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १
अ०७/प्र०२ "इस प्रसंग में काशी के ९ गणराज और कोसल के ९ गणराज जो मल्ल और लिच्छिवि जाति की भिन्न-भिन्न श्रेणियों के अगुआ थे, उनके चेटक की मदद में लड़ने का उल्लेख २४ है, पर विदेह के किसी भी गणराज का जिक्र नहीं मिलता। इससे भी यह साबित होता है कि तब तक विदेह में गणराज्य स्थापित नहीं हुआ था। हाँ, अपनी श्रेणियों में वंशपरम्परागत एक-एक नायक अवश्य माना जाता था, उन श्रेणिपतियों पर राजा चेटक का शासन था और सब कामों में वह महाराजा की हैसियत से उन पर हुक्म करता था। यद्यपि काशी और कोशल के राज्य भी उस समय विदेह राज्य में सम्मिलित थे, पर वहाँ की आन्तरिक शासन-व्यवस्था में विदेहराज का हस्तक्षेप नहीं था। अपने राज्यकारोबार में वहाँ के गणराज्य स्वतंत्र थे। हाँ. यद्ध जैसे प्रसंगों में वे एक दूसरे की मदद के लिए खास नियमों से बँधे रहते थे, और इसी वजह से उनने कोणिक के आक्रमण के समय चेटक का साथ दिया था।
"चेटक विदेह का परम्परागत राजा था, इस बात का यद्यपि स्पष्ट उल्लेख हमारे देखने में नहीं आया, पर इस से यह भी निश्चित कैसे मान लिया जाय कि वह परम्परागत राजा नहीं था?, और यह भी कौनसा नियम है कि परम्परागत राजा हो, वही राजा माना जाय और दूसरा नहीं? लेखक महाशय जो यह कहते हैं कि "चेटक परम्परागत राजा नहीं था, यह बात इतिहास और स्वयं श्वेताम्बरग्रंथों से सिद्ध है" बिलकुल निराधार है। तर्कमात्र से कुछ कल्पना कर लेना यह इतिहास नहीं कहा जा सकता। क्या लेखक यह बताने की तकलीफ उठाएँगे कि चेटक के परम्परागत राजा न होने की बात किस श्वेताम्बरग्रन्थ में लिखी है? अथवा क्या यह भी किसी प्राचीन ग्रन्थ से बता सकते हैं कि चेटक वैशाली के नियुक्त राष्ट्रपति थे? इस बात को लेखक जी ध्यान में रखें कि किसी आधुनिक विद्वान् के कह देने मात्र से चेटक वैशाली के अथवा लिच्छविवंश के नियुक्त राष्ट्रपति सिद्ध नहीं हो सकते। विदेह देश
दिया गया है कि इसमें 'वज्जी' और 'वैदेहीपुत्र' (कोणिक) की जीत हुई और नौ मल्लक और नौ लिच्छवि गणराजों की हार हुई। देखिये निम्नलिखित भगवतीसूत्र के शब्द-"महाशिलाकंटए णं भंते संगामे वट्टमाणे के जइत्था के पराजइत्था? गोयमा! वज्जीविदेहपुत्ते जइत्था नव मल्लई नव लेच्छई कासीकोसलगा अट्ठारस विगणरायाणो पराजइत्था।" (भ./ श.७/ उ.९/ प. ३१५)। यहाँ टीका में 'वज्जी' शब्द का अर्थ 'वज्री' अर्थात् इन्द्र
किया है, पर वस्तुतः यहाँ 'वज्जी' शब्द 'वृजिकजाति' का प्रबोधक है।" लेखक। १२४. "इस प्रंसग पर बाबू कामताप्रसाद जी ने अपने लेख में नौ मल्लिक, नौ लिच्छवि
गणराजों के अतिरिक्त ४८ काशी-कौशल के गणराजों का जो उल्लेख किया है, वह बिलकुल गलत है। काशी-कौशल के नौ मल्लिक और नौ लिच्छवि गणराजों ने चेटक को इस युद्ध में साहाय्य प्रदान किया था, दूसरे किसी ने नहीं।" लेखक।
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