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५४० / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १
अ०७/प्र०२ पं० हीरालाल हंसराज जी जामनगरवालों की ओर से प्राप्त हुए उत्तरपत्र से मालूम हुआ कि हिमवन्तसूरि-कृत मूल थेरावली भी अब भाषान्तर-सहित छप रही है। इससे उसके शीघ्र प्रकट हो जाने की आशा है। साथ ही, श्वेताम्बर-समाज के प्रसिद्ध विद्वान् श्रीमान् पं० सुखलाल जी से, जो इस समय आश्रम में तशरीफ रखते हैं, मालूम हुआ कि उन्होंने सन्देह होने पर थेरावली के अनुवाद उक्त पं० हीरालाल हंसराज. जी से ग्रंथ की मूल प्राचीन प्रति की बाबत दर्याप्त किया था और यह भी पूछा था कि अनुवाद के साथ में कुछ गाथाएँ देकर जो व्याख्या की गई है, वह व्याख्या उनकी निजी है या किसी टीका का अनुवाद है? उत्तर में उनके यह लिखने पर कि वह व्याख्या टीका का ही अनुवाद है और मूल प्रति कच्छ के अंचलगच्छीय धर्मसागर जी के भण्डार में मौजूद है, जो नागौर या बीकानेर से वहाँ पहुँची है, उस भंडार से इसकी प्राप्ति के लिये कोशिश की गई। परन्तु अनेक मार्गों से छह सात महीने तक बराबर प्रयत्न करने पर भी वह मूल प्रति अभी तक देखने को नहीं मिल सकी
और न यही मालूम हो सका कि वह प्रति वहाँ मौजूद भी है या कि नहीं। अन्यत्र भी तलाश जारी है। ऐसी हालत में जब तक मूल प्रति देखने को न मिल जाय और उस पर से ग्रंथ के असली होने का निश्चय न हो जाय, तब तक उसके प्रकाशित होने पर भी उस पर सहसा विश्वास नहीं किया जा सकता, ऐसी उनकी तथा पं० बेचरदास जी और जिनविजय जी की राय है। और यह ठीक ही है। सत्य के निर्णायार्थ मूल प्रति के दिखलाने में किसी को भी संकोच न होना चाहिये। तद्विषयक सन्देह को दूर करना उसके प्रकाशकों का पहला कर्त्तव्य हैं।" ६.५. तृतीय लेख
(ज्ञातव्य-इस लेख में दी गयीं पादटिप्पणियाँ इसी लेख के लेखक की तथा कतिपय 'अनेकान्त' के सम्पादक पं० जुगलकिशोर मुख्तार की हैं। पादटिप्पणी के अन्त में 'लेखक' और 'सम्पादक' शब्द से इसका संकेत कर दिया गया है।)
राजा खारवेल और हिमवन्त-थेरावली१२१
लेखक : मुनि श्री० कल्याणविजय जी "अनेकान्त की ४ थी किरण में 'राजा खारवेल और उसका वंश' इस हैडिंग से हमारा एक लेख छपा है, जो कलिंग चक्रवर्ती महाराज खारवेल के जीवनवृत्तान्त से संबद्ध है। इस लेख का आधार 'हिमवन्त थेरावली' का गुजराती अनुवाद है, यह बात हमने उसी लेख के अन्त में फुटनोट देकर स्पष्ट कर दी है। १२१. 'अनेकान्त' वर्ष १/ किरण ६-७ / वैशाख-ज्येष्ठ, वीर नि० सं० २४५६ / पृ. ३४२-३५०।
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