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५३८ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १
अ० ७ / प्र० २
उत्तराधिकारी इसके दो पुत्र, पौलोम और चरम हुये, जिन्होंने इन्द्रपुर की नींव डाली। इनकी सन्तान बहुत राजाओं के बाद, जिनके नाम गिनाना फ़िजूल है, एक राजा अभिचन्द्र हुआ। इसने विन्ध्याचल पर्वत के पृष्ठ भाग में चेदिराष्ट्र की स्थापना की । इसकी रानी उग्रवंशी वसुमती नामक थी । " ( हरिवंशपुराण / सर्ग १७ / श्लोक १-३९) ।
" इस कथन से राजा खारवेल के वंश का ठीक परिचय मिलता है और इसके अनुसार उनकी ऐर उपाधि का अर्थ ऐलवंशज होना ठीक है । तथापि ऐलवंशज अभिचन्द्र ने ही चेदिराष्ट्र की स्थापना की, इसलिये खारवेल का चेतिराजवसवधेन होना ठीक ही है, क्योंकि उनके पूर्वज विन्ध्याचल पर्वत के निकटवर्ती महाकौशल से आये थे, और वे चेदिराष्ट्र के उत्तराधिकारी थे । अतः 'हिमवंत - थेरावली' के अनुसार राजा खारवेल का जो वंशपरिचय उपस्थित किया गया है, वह ठीक नहीं है। उसके स्थान पर उक्त प्रकार से जो दिगम्बर जैनपुराण, हिन्दू-पुराण और स्वयं खारवेल के शिलालेख के अनुसार वंशवर्णन किया गया है वह विशेष प्रामाणिक है, अर्थात् उत्तर कौशल के राजपुत्र ऐलेय हरिवंशी की सन्तान चेदिकुल की जो थी, और जो विन्ध्याचल के पास दक्षिण कौशल में आ रही थी, उसी के वंशज खारवेल थे । ता. १७ - ३-१९३० । (लेख समाप्त ) ।
६.३. उपर्युक्त लेख पर सम्पादकीय नोट ११९
लेखक : पं० जुगल किशोर मुख्तार
सम्पादक : 'अनेकान्त'
" इस लेख की विचारसरणी, यद्यपि, बहुत कुछ स्खलित जान पड़ती है, सत्य की अपेक्षा साम्प्रदायिकता की रक्षा की ओर वह अधिक झुकी हुई है और इसी से इसमें कितनी ही विवादस्थ - अनिर्णीत बातों अथवा दूसरे विद्वानों के कथनों को, जिन्हें अपने अनुकूल समझा, यों ही, बिना उनकी खुली जाँच किये, एक अटल सत्य के तौर पर मान लिया गया है, और जिन्हें प्रतिकूल समझा, उन्हें या तो पूर्णतया छोड़ दिया गया है और या उनके उतने अंश से ही उपेक्षा धारण की गई है, जो अपने विरुद्ध पड़ता था । और इसका कुछ आभास पाठकों को सम्पादकीय फुटनोटों से भी मिल सकेगा। फिर भी इस लेख पर से उक्त 'थेरावली' की स्थिति संदिग्ध जरूर हो जाती है, भले ही उसे अभी जाली न कहा जा सके, और इस बात की खास जरूरत जान पड़ती है कि उसे जितना भी शीघ्र हो सके पूर्ण परिचय के साथ प्रकाश में लाया जाय। और इसलिये मुनि जी जैसे इतिहासप्रिय विद्वानों को उसके
११९. 'अनेकान्त' / वर्ष १ / किरण ५ / चैत्र, वीर नि.सं. २४५६ / पृ. ३०२ ।
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