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अ० ७ / प्र० २
१.
यह कौशल (दक्षिण कौशल) का राजवंश था ।
२. यह साधारणतः ‘मेघ' (Meghas) ( मेघा इति समाख्याता :) नाम से विख्यात
था।
यापनीयसंघ का इतिहास / ५३७
३. यह विशेष शक्तिवाला और विद्वान् था, और
४. इसके कुल नौ राजा थे ।
" इस वंश का मेघ नाम खारवेल की मेघवाहन उपाधि का द्योतक है, यह मि० जायसवाल प्रकट करते हैं। इसका समर्थन एक प्राचीन उड़िया काव्य से होता है, जो 'इंडियन म्यूजियम' में मौजूद है। उसमें लिखा है कि 'कलिंग को मगध के नन्द राजाओं ने जीत लिया था, किन्तु बाद को ऐर राजा ने नंद राजा को हरा कर उसका उद्धार किया। यह नन्द कट्टर वैदिक - धर्मावलम्बी था, किन्तु ऐर पाखण्डी था । ऐर का विरोध अशोक से भी विशेष था। पहले ऐर की राजधानी दक्षिण कौशल की कौशला नगरी थी, बाद को उन्होंने अपनी राजधानी खण्डगिरि पर बनाई ।
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इस उल्लेख से भी खारवेल के पूर्वजों का दक्षिण कौशल से आना सिद्ध होता है । और यह बात हिन्दू-पुराणों के उपर्युक्त उल्लेख के अनुकूल है। इसके अतिरिक्त ऐर अर्थ को पुष्ट करनेवाला कोई उल्लेख नहीं मिलता। हाँ, जैन हरिवंशपुराण से उत्तर कौशल के हरिवंशीय राजा दक्ष के द्वारा खारवेल का ऐलवंशज होना प्रकट है और यह भी प्रकट है कि उनके वंशज उत्तर से आकर दक्षिण की ओर विन्ध्याचल पर्वत के पृष्ठ भाग में चेदिराष्ट्र बना कर वहाँ शासन करने लगे थे। वह कथा इस प्रकार है
" हरिवंशीय राजा दक्ष का एक ऐलेय नाम का पुत्र और मनोहरी नाम की सुन्दर कन्या थी । दक्ष मनोहरी पर आसक्त हो गया और उस नीच ने उसे अपनी पत्नी बना लिया। इस कारण रानी इला अपने पति से इस दुष्कर्म के कारण रुष्ट हो गई और अपने पुत्र ऐलेय को लेकर दूसरे देश को चली गई। ऐलेय दुर्ग देश में पहुँचा और वहाँ उसने 'इलावर्द्धन' नामक नगर स्थापित किया । इसके बाद वह अङ्गदेश में ताम्रलिप्ति नामक नगरी भी स्थापित करने में सफल हुआ। ऐलेय एक राजा बन गया और फिर वह दिग्विजय को निकला। इस दिग्विजय में ऐलेय ने नर्मदातट पर माहिष्मतीनगरी की नींव डाली। अन्त में वह दिगम्बर मुनि हो गया और उसका पुत्र कुणिम राजा हुआ । कुणिम ने विदर्भदेश में कुण्डिनपुर को बसाया। यह भी हो गया और इसके बाद पुलोम राजा हुआ, जिसने पुलोमपुर नगर बसाया। इसके
११८. Ibid., IV, 480-482.
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