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अ०७/प्र०२
यापनीयसंघ का इतिहास / ५३१ "इस प्रकार जिनशासन की उन्नति करनेवाला भिक्खुराय अनेकविध धर्मकार्य करके महावीर निर्वाण से ३३० (तीन सौ तीस) वर्षों के बाद स्वर्गवासी हुआ।
"भिक्खुराय के बाद उसका पुत्र ‘वक्रराय' कलिंग का अधिपति हुआ।११ वक्रराय भी जैनधर्म का अनुयायी और उन्नति करनेवाला था। धर्माराधन और समाधि के साथ यह वीर निर्वाण से ३६२ (तीन सौ बासठ) वर्ष के बाद स्वर्गवासी हुआ। वक्रराय के बाद उसका पुत्र 'विदुहराय' कलिंग देश का अधिपति हुआ।र
"विदहराय ने भी एकाग्रचित्त से जैनधर्म की आराधना की। निर्ग्रन्थ-समूह से प्रशंसित यह राजा महावीरनिर्वाण से ३९५ (तीन सै पंचानवे) वर्ष के बाद स्वर्गवासी हुआ।"९३ (लेख समाप्त) ६.२. द्वितीय लेख
(ज्ञातव्य-इस लेख में दी गयीं पादटिप्पणियाँ इसी लेख के लेखक की तथा कतिपय ‘अनेकान्त' के सम्पादक पं० जुगलकिशोर मुख्तार की हैं। पादटिप्पणी के अन्त में 'लेखक' और 'सम्पादक' शब्द से इसका संकेत कर दिया गया है।)
राजा खारवेल और उसका वंश
लेखक : श्री. बाबू कामताप्रसाद जी "अनेकान्त' की ४ थी किरण (पृष्ठ २२६-२२९) में उक्त शीर्षक के नीचे मुनि कल्याणविजय जी (श्वे०) ने राजा खारवेल के वंश का कुछ परिचय कराया है।
९१. "कलिंग देश के उदयगिरि पर्वत की मानिकपुर गुफा के एक द्वार पर खुदा हुआ 'वक्रदेव'
के नाम का शिलालेख मिला है, जो इसी 'वक्रराय' का है। लेख नीचे दिया जाता है-"वेरस महाराजस कलिंगाधिपतिनो महामेघवाहन 'वकदेपसिरि' नो लेणं" (मुनि जिन
विजयसंपादित प्राचीन जैनलेखसंग्रह / भा.१/ प.४९)।" लेखक। ९२. "उदयगिरि की मञ्चपुरी गुफा के सातवें कमरे में 'विदुराय' के नाम का एक छोटा
लेख है, उसमें लिखा है कि यह 'लयन' (गुफा) कुमार विदुराव का है। लेख के मूल शब्द नीचे दिये जाते हैं-'कुमार वदुरवस लेन' (एपिग्राफिका इंडिका जिल्द १३)।"
लेखक। ९३. "कुछ महीनों पहिले 'हिमवंत थेरावली' नामक एक प्राकृत-भाषामयी प्राचीन स्थविरावली
का गुजराती अनुवाद मेरे देखने में आया था, जिसका परिचय मैंने अपने (अप्रकाशित) निबन्ध 'वीर संवत् और जैन कालगणना' के अन्त में परिशिष्ट के तौर पर दिया
है, उसी परिशिष्ट में 'राजा खारवेल और उसका वंश' यह एक प्रकरण है।" लेखक। ९४. 'अनेकान्त'। वर्ष १/किरण ५ / चैत्र, वीर नि.सं.२४५६/ पृ. २९७-३०१ ।
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