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अ०७/प्र०२
यापनीयसंघ का इतिहास / ५२७ नहीं हुआ था। हाथीगुफा-लेख के "चेतवसवधनस' इस उल्लेख से कोई-कोई विद्वान् खारवेल को 'चैत्रवंशीय' समझते थे, तब कोई उसे 'चेदिवंश' का राजा कहते थे। हमारे प्रस्तुत थेरावली-कार ने इस विषय को बिलकुल स्पष्ट कर दिया है। थेरावली के लेखानुसार खारवेल न तो 'चैत्रवंश्य' था और न 'चेदिवंश्य', किन्तु वह 'चेटवंश्य', था। क्योंकि वह वैशाली के प्रसिद्ध राजा 'चेटक' के पुत्र कलिंगराज 'शोभनराय' की वंश-परम्परा में जन्मा था।
"अजातशुत्र के साथ की लड़ाई में चेटक के मरने पर उसका पुत्र शोभनराय वहाँ से भाग कर किस प्रकार कलिंगराजा के पास गया और वह कलिंग का राजा हुआ इत्यादि वृत्तान्त थेरावली के शब्दों में नीचे लिखे देते हैं, विद्वान् गण देखेंगे कि कैसी अपूर्व हकीकत है।
"वैशाली का राजा चेटक तीर्थंकर महावीर का उत्कृष्ट श्रमणोपासक था। चम्पानगरी का अधिपति राजा कोणिक, जो कि चेटक का भानजा था (अन्य श्वेताम्बरजैन-सम्प्रदाय के ग्रन्थों में कोणिक को चेटक का दोहिता लिखा है) वैशाली पर चढ़ आया और लड़ाई में चेटक को हरा दिया। लड़ाई में हारने के बाद अन्नजल का त्याग कर राजा चेटक स्वर्गवासी हुआ।
"चेटक का शोभनराय नाम का एक पुत्र वहाँ (वैशाली नगरी) से भागकर अपने श्वशुर कलिंगाधिपति 'सुलोचन' की शरण में गया। सुलोचन के पुत्र नहीं था, इसलिये अपने दामाद शोभनराय को कलिंगदेश का राज्यासन देकर वह परलोकवारी हुआ।
__ "भगवान् महावीर के निर्वाण के बाद अठारह वर्ष बीते, तब शोभनराय का कलिंग की राजधानी कनकपुर में राज्याभिषेक हुआ। शोभनराय जैनधर्म का उपासक था, वह कलिंग देश में तीर्थस्वरूप कुमारपर्वत पर यात्रा करके उत्कृष्ट श्रावक बन गया था।
___ "शोभनराय के वंश में, पांचवीं पीढ़ी में, 'चण्डराय' नामक राजा हुआ, जो महावीर के निर्वाण से १४९ वर्ष बीतने पर कलिंग के राज्यासन पर बैठा था।
"चण्डराय के समय में पाटलिपुत्र नगर में आठवाँ नन्दराजा राज्य करता था, जो मिथ्याधर्मी और अतिलोभी था। वह कलिंगदेश को नष्ट-भ्रष्ट करके तीर्थस्वरूप कुमरगिरि पर श्रेणिक के बनवाये हुए जिनमन्दिर को तोड़ उसमें रही हुई ऋषभदेव की सुवर्णमयी प्रतिमा को उठाकर पाटलिपुत्र में ले आया। ७८. "अन्य जैन शास्त्रों में भी "कंचणपुरं कलिंगा" इत्यादि उल्लेखों में कलिंग देश की
राजधानी का नाम 'कञ्चनपुर' (कनकपुर) ही लिखा है।" लेखक ।
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