________________
५१६ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १
अ० ७ / प्र० १
रूप में वर्णन
रूप में उल्लेख किया है तथा उनका अनेक ग्रन्थों के रचयिता के किया है। इस प्रमाण के आधार पर मुनि श्री जिनविजय जी इस निष्कर्ष पर पहुँचते है कि महान् तत्त्वज्ञ आचार्य हरिभद्र और 'कुवलयमाला' कथा के कर्त्ता उद्योतनसूरि अपरनाम दाक्षिण्यचिह्न दोनों (कुछ समय तक तो अवश्य ही ) समकालीन थे । अतः हम ई० सन् ७०० से ७७० अर्थात् वि० सं० ७५७ से ८२७ तक हरिभद्रसूरि का सत्तासमय निश्चित करते हैं।" (जैन साहित्य का बृहद् इतिहास / भाग ३ / पृ० ३५९ ) ।
———
अतः पं० नाथूराम जी प्रेमी ने श्री हरिभद्रसूरि का स्वर्गवास वि० सं० ५८५ में मानकर उनके ग्रन्थ 'ललितविस्तरा' में 'यापनीयतन्त्र' का उल्लेख होने से जो यापनीयसंघ की उत्पत्ति वि० सं० ५८५ से बहुत पहले मानी है, वह समीचीन नहीं है। उसकी उत्पत्ति वि० सं० ५८५ से पहले अवश्य हुई थी, किन्तु बहुत पहले नहीं, अपितु १०० वर्ष पहले अर्थात् पाँचवीं शती ई० के प्रथम चरण में ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org