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________________ ५१४ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १ अ० ७ / प्र० १ भेद का इतिहास' नामक षष्ठ अध्याय में प्रदर्शित अनेक प्रमाणों से सिद्ध है कि ई० पू० ५वीं शती (४८९ ई० पू० ) में अन्तिम अनुबद्ध केवली जम्बूस्वामी के निर्वाण के बाद मूलसंघ में विभाजन होने पर श्वेताम्बर - सम्प्रदाय की उत्पत्ति हुई थी। तत्पश्चात् ई० पू० चौथी शती (३६५ ई० पू० ) में अन्तिम श्रुतकेवली भद्रबाहु के समय में द्वादशवर्षीय दुर्भिक्ष से उत्पन्न परिस्थितियों के कारण मूलसंघ में पुनः विभाजन हुआ और अर्धफालकसम्प्रदाय का उदय हुआ, जो आगे चलकर श्वेताम्बर - सम्प्रदाय में विलीन हो गया। किन्तु 'दर्शनसार' में श्वेताम्बरसंघ की उत्पत्ति विक्रम की मृत्यु के १३६ वर्ष बाद बतलाई गई है, अतः यह भी प्रमाणविरुद्ध है। सिद्धान्ताचार्य पं० कैलाशचन्द्र जी शास्त्री ने भी ऐसा ही मत व्यक्त किया है । (देखिये, जैसा.इ./पू.पी./पृ.४९२) । निष्कर्ष यह कि दर्शनसार में यापनीयसंघ की उत्पत्ति का काल जो विक्रम - मृत्यु - संवत् ७०५ या २०५ बतलाया गया है, वह प्रामाणिक नहीं है। यापनीय - सम्प्रदाय की उत्पत्ति कब हुई थी, इसके निर्णय हेतु हमारे पास उपलब्ध विश्वसनीय प्रमाण केवल अभिलेख हैं। जैसा कि पूर्व में दर्शाया गया है, यापनीयसंघ का सर्वप्रथम उल्लेख दक्षिणभारत के कदम्बवंशीय राजा मृगेशवर्मा के ताम्रपत्रलेख में मिलता है । (देखिये, अध्याय २/ प्र.६ / शी. २) । राजा मृगेशवर्मा का राज्यकाल ४७०४९० ई० निश्चित है। किसी नये धार्मिक सम्प्रदाय को लोकमान्यता और राजमान्यता पाने के लिए अधिक से अधिक पचास वर्ष का समय पर्याप्त है। अतः यापनीयसंघ का उत्पत्तिकाल उक्त ताम्रपत्रलेख के काल ४७०-४९० ई० से अधिक से अधिक पचास वर्ष पूर्व अर्थात् ईसा की पाँचवीं शताब्दी का प्रथम चरण माना जा सकता है। यदि उसकी उत्पत्ति इससे पूर्व हुई होती, तो वह इससे पहले लोकमान्यता और राजमान्यता प्राप्त कर लेता । तब इससे पहले के अभिलेखों अथवा साहित्य में उसके नाम का उल्लेख अवश्य होता, जैसे अशोक के सातवें स्तम्भलेख (२४२ ई० पू० ) में 'निर्ग्रन्थसंघ' का और ईसापूर्व प्रथम शताब्दी के बौद्धग्रन्थ 'अपदान' में 'श्वेतवस्त्रसंघ ' (श्वेतपटसंघ) का उल्लेख मिलता है । यतः यापनीयसंघ का उल्लेख पाँचवीं शताब्दी ई० से पूर्व के किसी भी अभिलेख या साहित्य में नहीं मिलता, अतः सिद्ध है कि उसकी उत्पत्ति ईसा की पाँचवीं शताब्दी के पूर्व नहीं हुई, पाँचवीं शताब्दी ई० का प्रथम चरण ही उसका उत्पत्तिकाल है । श्वेताम्बर - सम्प्रदाय का उदयकाल साहित्यिक प्रमाणों से जम्बूस्वामी के निर्वाण के पश्चात् अर्थात् ई० पू० पाँचवीं शताब्दी सिद्ध है तथा एकान्त - अचेलमार्गी निर्ग्रन्थसंघ (दिगम्बरसम्प्रदाय) का अस्तित्व जैनेतरसाहित्य एवं पुरातत्त्व में उपलब्ध प्रमाणों से ईसा से तीन हजार वर्ष पूर्व से सिद्ध होता है। यापनीयसंघ को पाँचवीं शताब्दी ई० से पूर्व का सिद्ध करनेवाला कोई भी साहित्यिक या पुरातात्त्विक प्रमाण उपलब्ध नहीं है। डॉ० सागरमल जी ने भी इसे स्वीकार किया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004042
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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