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अ०७/प्र०१
यापनीयसंघ का इतिहास / ५०९ ___ "कुछ और लेख एवं विवरण हैं, जो बहुत विलम्ब से प्रकाश में आये हैं, उनमें एक है ११२४ ई० का सेडम-लेख, जिसमें मडुवगण के प्रभाचन्द्र विद्य का उल्लेख है। संभवतः यह गण यापनीयसंघ से ही संबंधित हो।८ दूसरा है १२१९ ई० का बदलि (जिला बेलगाँव)-लेख जिसमें यापनीयसंघ और कारेयगण का उल्लेख है। इसमें जिन साधुओं के नामोल्लेख हैं, वे हैं माधव भट्टारक, विनयदेव, ---कीर्ति भट्टारक, कनकप्रभ और श्रीधर-विद्यदेव।२९ तीसरे हैं १२०९ और १२५७ ई० के हन्नकेरि-लेख। इनमें यापनीयसंघ, मइलापान्वय, कारेयगण के सन्दर्भ मिलते हैं। इसमें जिन गुरुओं के नाम अंकित हैं, वे हैं कनकप्रभ (जो 'जातरूपधर-विख्यातम्,' कहलाते थे तथा अपनी निर्ग्रन्थता के लिए अतिप्रसिद्ध थे) और श्रीधर (कनकप्रभ पण्डित)।४० चौथा है कोल्हापुर के मंगलवार-पेठवाले मंदिर की पहली मंजिल की पीठवाला कन्नडलेख, जिसमें लिखा है कि वोमियण्ड ने यह पाठशाला बनवाई थी, जो यापनीयसंघपुन्नागवृक्षमूलगण के विजयकीर्ति के शिष्य रवियण्ण का भाई था।१ पाँचवाँ, जिसकी प्रतिलिपि डॉ० गुरुराज भट्ट ने मुझे भेजी थी, जो वरंग (द० क०)-स्थित प्रतिमा से प्राप्त हुआ है, इसमें काणूगण का उल्लेख है। श्रीभट्ट जी ने इस लेख का गम्भीरता से अध्ययन किया है। (पृ.२५०)।
"उपर्युक्त यापनीयसंघ से संबंधित नाना विवरणों और लेखों का (५वीं सदी से १४ वीं सदी ई० तक) तिथिक्रम से सर्वेक्षण करने पर संघ के बारे में बहुत से सुनिश्चित और विस्तृत एवं प्रामाणिक तथ्य प्रकाश में आते हैं। सर्वप्रथम तो यापनीयजन निर्ग्रन्थों, श्वेतपट और कूर्चकों से सर्वथा भिन्न थे। यापनीयसंघ का गणों से विशेष सम्बन्ध था, जैसे कुमुलिगण या कुमुदिगण, (कोटि) मडुवगण, कण्डूर् या काणूगण, पुन्नागवृक्ष-मूलगण (जो मूलसंघ से भी संबंधित है), वन्दियूरगण, कारेयगण, नन्दिगच्छ और मइलापान्वय आदि-आदि। इस तरह विभिन्नगणों से सम्बद्धता से स्पष्ट प्रतीत होता है कि संघ क्रमशः गणों के माध्यम से ही विख्यात हो सका। गणभेद ग्रंथ के विवरण से ज्ञात होता है कि वे कर्नाटक और उसके चहुँवर्ती क्षेत्र में अत्यधिक उपयोगी और प्रसिद्ध थे। --- (पृ.२५०)।
"यापनीयसंघ का विवरण जिन स्थानों से मिलता है, उनसे यह स्पष्ट ज्ञात होता है कि इस संघ के साधुओं का वर्चस्व एवं प्रभुत्व आज के धारवाड, बेलगाँव,
३८. P.B. Desai : Ibidem p. 403. ३९. R.S. Panchamukh : Karnataka Inscription 1, Dharwar 1941, pp. 75-6. ४०. K.G. Kundamgar : Inscription from N-Karnatak & Kolhapur State 1931. ४१. जिनविजय (कन्नड बेलगाँव १९३१) (मई-जून)।
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