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________________ ५०८ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १ अ०७/प्र०१ प्रतिष्ठा यापनीयसंघ के वडिपुर (वन्दिपूर) गण के नागदेव सिद्धान्तिक के शिष्य ब्रह्मदेव ने कराई थी।३० १२ वीं सदी ई० के मनोलि (जिला बेलगाँव) के लेख से विदित होता है कि यापनीयसंघ के गुरु मुनिचन्द्रदेव की समाधि निर्मित कराई गई थी, जो सिरियादेवी द्वारा संस्थापित वसदि (मन्दिर) के आचार्य थे। इसी में यापनीयसंघ के मुनिचन्द्र के शिष्य पाल्यकीर्ति के समाधिमरण का भी उल्लेख है।३१ १३वीं सदी ई० के अदरगुञ्छि (जिला धारवाड) के विवरण से यापनीयसंघ और कण्डूर्गण की उच्छंगिस्थित वसदि को दी जाने वाली भूमि की सीमाओं का लेखा-जोखा प्राप्त होता है।३२ (पृ.२४८-२४९)। __१३ वीं सदी के हुकेरि (जिला बेलगाँव) विवरण से जो सर्वथा अस्त-व्यस्त और कटा-फटा है, यापनीयसंघ के किसी गण (गण का नाम मिट गया है) के चैकीर्ति का नामोल्लेख मिलता है।३३ (पृ. २४९)। "कागवाड (जिला बेलगाँव) के तलघर में भ० नेमिनाथ की एक विशाल प्रतिमा है, जिसके पीठिका-लेख में धर्मकीर्ति और गाम बम्मरस के नामोल्लेख हैं, इसमें जो तिथि अंकित है, वह १३९४ ई० के समकालीन तिथि है। इस विवरण में कुछ व्यवधान भी हैं, पर यापनीयसंघ और पुन्नागवृक्षमूलगण के साधुओं में नेमिचन्द्र (जो तुष्ठुवराज्यस्थापनाचार्य भी कहलाते थे) धर्मकीर्ति और नागचन्द्र के नाम भी उल्लेखनीय हैं।३४ (पृ. २४९)। __ "कुछ बिना तिथियों के भी विवरण उपलब्ध हैं। सिरुर (जमखंडि) विवरण से ज्ञात होता है कि पार्श्वनाथ-भट्टारक की प्रतिमा कुसुम-जिनालय के लिए यापनीयसंघ और वृक्षमूलगण के कालिसेहि ने भेंट की थी।३५ गरग (जिला धारवाड)-विवरण में यापनीयसंघ कुमुदिगण के शांतिवीरदेव के समाधिमरण का स्पष्ट उल्लेख है। एक और नष्ट हुए इसी तरह के विवरण में इसी संघ और गण का उल्लेख मिलता है।३६ रायद्रुग-(जिला बेल्लारी)-विवरण में निसिदि के निर्माण का उल्लेख है, जिसमें आठ नाम लिखे हैं, उनमें से मूलसंघ के चन्द्रभूति तथा यापनीयसंघ के चन्द्रेन्द्र, बादय्य और तम्मण्ण के नाम स्वाभिप्रेत हैं।२७ (पृ.२५०)। ३०. A.R.I.E. 1960-61, No. 511 also P.B. Desai Ibidem p. 404. ३१. A.R.S.I.E. 1940-41, No. 563-65, p. 245. ३२. A.R.S.I.E. 1941-2, No. 3, p. 255. ३३. A.R.S.I.E. 1941-42, No. 6 p. 261. ३४. जिनविजय (कन्नड़) बेलगाँव, जुलाई १९३१ । ३५. A.R.S.I.E. 1938-39, No. 98, p. 219 ३६. A.R.S.I.E. 1925-26, No. 5441-42, p. 76.. ३७. A.R.S.I.E. 1919 No. 109, p. 12. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004042
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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