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________________ यापनीयसंघ का इतिहास / ४८९ अ० ७ / प्र० १ था। पहले इसका नाम बोटिकमत पड़ा, फिर मूलगण या मूलसंघ, तदनन्तर 'यापनीय' नाम से प्रसिद्ध हुआ । आगे चलकर डॉ० सागरमल जी ने यापनीयमत का उत्पत्तिकाल ईसा की पाँचवीं शती मान लिया । ( देखिये, अध्याय २/ प्र.२ / शी. ६.५ एवं प्र. ३ / शी. १) । किन्तु, द्वितीय अध्याय में युक्ति-प्रमाणपूर्वक सिद्ध किया जा चुका है कि बोटिक शिवभूति ने, न दिगम्बरमत का प्रवर्तन किया था, न यापनीयमत का, अपितु उसने श्वेताम्बरमत छोड़कर भगवान् महावीर द्वारा प्रणीत सर्वथा अचेलमार्गी दिगम्बरमत अपनाया था । 'आवश्यक मूलभाष्य' आदि के कर्त्ताओं ने दिगम्बरमत को ही 'बोटिकमत' शब्द से अभिहित किया है। ३ श्वेताम्बरसंघ से यापनीयसंघ की उत्पत्ति श्वेताम्बरसाहित्य से यापनीयसंघ के उद्गम, समय और प्रवर्तक - पुरुष के विषय में कोई सूचना प्राप्त नहीं होती । दिगम्बरसाहित्य से ही इन बातों की कुछ जानकारी मिलती है। ४ बृहत्कथाकोशकार आचार्य हरिषेण ( ई. सन् ९३१) ने बृहत्कथाकोश के भद्रबाहुकथानक में शिथिलाचारी निर्ग्रन्थ साधुओं से अर्धफालकसंघ की उत्पत्ति, उससे श्वेताम्बरसंघ का उदय तथा श्वेताम्बरसंघ से यापनीयसंघ के जन्म की कथा का वर्णन किया है। इसका विस्तार से निरूपण षष्ठ अध्याय में किया जा चुका है। देवसेनसूरि (९३३ ई०) ने अपने ग्रंथ दर्शनसार में लिखा है कि विक्रमसंवत् २०५ में कल्याणनगर में श्रीकलश नामक श्वेताम्बर मुनि से यापनीयसंघ उत्पन्न हुआकल्लाणे वरणयरे दुण्णिसए पंच उत्तरे जादे । जावणिय- संघभावो सिरिकलसादो हु सेवडदो ॥ २९ ॥ रत्ननन्दी ने भद्रबाहुचरित में यापनीयसंघ की उत्पत्ति पर प्रकाश डालनेवाली निम्न घटना का वर्णन किया है-करहाटक नामक नगर में राजा भूपाल राज्य करते थे। उनकी नृकुलदेवी नाम की प्रिय रानी थी। एक बार रानी ने अपने पति से कहा कि मेरे पितृनगर में मेरे कुछ गुरुजन (मुनिगण) पधारे हैं। धर्मप्रभावना के लिए आप ४. बायें हाथ पर अर्धवस्त्रखण्ड लटकाकर चलनेवाले साधु अर्धफालकधारी कहलाते थे। (बृहत्कथाकोश / भद्रबाहुकथानक / श्लोक ५८ ) । देखिए, अध्याय ६ / प्रकरण १/ शीर्षक ६ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004042
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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