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[बासठ]
जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १ ५. श्वेताम्बर-आगमों में श्वेताम्बर (सवस्त्र) साधुओं के लिए निर्ग्रन्थ शब्द का और आर्यिकाओं के लिए निर्ग्रन्थी शब्द का प्रयोग किया गया है। यह निर्ग्रन्थ शब्द के साम्प्रदायिक, ऐतिहासिक और लोकप्रसिद्ध अर्थ के विरुद्ध है। निर्ग्रन्थ शब्द का अर्थ नग्न दिगम्बरजैन साधु है। अचेलकधर्म का उपदेश देनेवाले अचेल तीर्थंकर महावीर वस्त्रपात्रादि बाह्य ग्रन्थ एवं मिथ्यात्वकषायादि आम्यन्तर ग्रन्थ (परिग्रह) के त्यागी होने से निर्ग्रन्थ कहलाते थे। इसलिए उनके अनुयायी अचेल मुनियों का संघ निर्ग्रन्थसंघ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। ईसापूर्व शताब्दियों में रचित प्राचीन बौद्ध पिटकसाहित्य में भगवान् महावीर का उल्लेख निगंठनाटपुत्र (निर्ग्रन्थज्ञातपुत्र) के नाम से हुआ है और उनके अनुयायी नग्न साधुओं को निगंठ (निर्ग्रन्थ), अचेल और अहिरिक (अह्रीक = निर्लज्ज) शब्दों से अभिहित किया गया है। सम्राट अशोक के देहली-टोपरा-सप्तम स्तंभलेख (२४२ ई० पू०) में निर्ग्रन्थों का एक सम्प्रदाय के रूप में उल्लेख है और ५वीं शताब्दी ई० के कदम्बवंशीय राजा श्रीविजयशिवमृगेश वर्मा के देवगिरि-ताम्रपात्रलेख (क्र. ९८) में श्वेतपटमहाश्रमणसंघ और निर्ग्रन्थमहाश्रमणसंघ को कालवंग ग्राम विभक्त कर दान में दिये जाने का वर्णन है। इससे सिद्ध है कि बुद्ध के समय से लेकर ईसा की पाँचवीं शताब्दी तक दिगम्बरजैनसंघ लोक में निर्ग्रन्थश्रमणसघ के नाम से प्रसिद्ध था और श्वेताम्बरजैनसंघ अपने उदयकाल (अन्तिम अनुबद्धकेवली जम्बूस्वामी के निर्वाणानन्तर, वीरनिर्वाण सं० ६२ = ४६५ ई० पू०) से लेकर ईसा की पाँचवीं शती तक श्वेतपटश्रमणसंघ, श्वेतवस्त्र, सिताम्बर, श्वेताम्बर आदि नामों से प्रसिद्धि को प्राप्त था। श्वेताम्बरसंघ अपने को लोक में निर्ग्रन्थसंघ के नाम से प्रसिद्ध नहीं कर सका, इसका कारण यही था कि यह नाम तीर्थंकर महावीर के समय से ही दिगम्बरजैनसंघ के लिए लोकविश्रुत हो चुका था। फलस्वरूप श्वेताम्बरसंघ को लोक में अपनी पहचान श्वेतपटश्रमणसंघ.सिताम्बरसंघ. श्वेतवस्त्रसंघ. श्वेताम्बरसंघ आदि नामों से बनानी पडी। इन प्रमाणों से सिद्ध होता है कि साम्प्रदायिक, ऐतिहासिक और लोकप्रसिद्धि की दृष्टियों से निर्ग्रन्थ शब्द का अर्थ दिगम्बरजैन मुनि ही है।
वस्तुतः श्वेताम्बरसंघ की उत्पत्ति के पूर्व निर्ग्रन्थसंघ के सभी साधु अचेल होते थे, अतः 'निर्ग्रन्थ' शब्द 'जैनसाधु' का पर्यायवाची बन गया था। इसलिए जब निर्ग्रन्थसंघ के कुछ साधुओं ने वस्त्रपात्र धारण कर श्वेताम्बरसंघ बना लिया, तब भी उन्होंने जैनसाधु के रूप में अपनी पहचान कराने हेतु अपने लिए 'निग्रन्थ' शब्द का प्रयोग प्रचलित रखा। किन्तु यह प्रयोग उनके शास्त्रों तक ही सीमित रहा। इस नाम से वे अपने संघ को लोक-प्रसिद्ध नहीं कर सके, क्योंकि यह नाम पहले से ही अचेल (दिगम्बर) जैनश्रमणों के लिए प्रसिद्ध था, साथ ही यह श्वेताम्बरों की साम्प्रदायिक विशिष्टता के विज्ञापन में भी बाधक था। इसलिए उन्होंने अपने संघ को श्वेतपट-श्रमणसंघ नाम से प्रसिद्ध किया।
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