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________________ अ०६/प्र०२ दिगम्बर-श्वेताम्बर-भेद का इतिहास / ४७९ डॉक्टर सा० की इन मान्यताओं में केवल दो मान्यताएँ क्रमशः इतिहास-सम्मत और आगमसम्मत नहीं हैं। यापनीयसंघ का जन्म वी० नि० सं० ६०९ (ई० सन् ८२/ डॉ० सा० के अनुसार ई० सन् १४२) में हुआ था, यह मान्यता इतिहास-सम्मत नहीं है। वस्तुतः उसकी उत्पत्ति ईसा की पाँचवीं शताब्दी के प्रारम्भ में हुई थी। डॉक्टर सा० ने स्वयं पूर्व में यही माना है। इसके प्रमाण सप्तम अध्याय (प्र.१ / शी०१०) में द्रष्टव्य हैं। तथा मथुराशिल्प में मूर्तित साधुओं का वेश आचारांगोक्त साधुवेश के अनुरूप है, यह मान्यता आगम-सम्मत नहीं है। वास्तविकता यह है कि आचारांग में एक, दो या तीन प्रावरण धारण करने का विधान शीतपरीषह-निवारण के लिए किया गया है, लज्जानिवारण के लिए नहीं। लज्जानिवारण के लिए कटिबन्धन (चोलपट्ट) पहनने की आज्ञा दी गई है। (देखिए/अध्याय ३/ प्रकरण १/ शीर्षक ६)। मथुराशिल्प में मूर्तित साधु लज्जानिवारण के लिए हाथ पर वस्त्र या कम्बल लटकाये हुए है, उसका कटिप्रदेश कटिबन्धन (चोलपट्ट) से वेष्टित नहीं है, अपितु नग्न है। यह वेश आचारांगोक्त साधुवेश के विरुद्ध है। शेष सभी मन्तव्य इतिहास-सम्मत हैं, केवल इतना संशोधन आवश्यक है कि दिगम्बर-श्वेताम्बर-भेद जम्बूस्वामी के निर्वाण के अनन्तर ही हो गया था। श्रुतकेवली भद्रबाहु के समय में मूलनिर्ग्रन्थसंघ में दूसरी बार विभाजन हुआ था और तब अर्धफालक-सम्प्रदाय की उत्पत्ति हुई थी, जो ईसा की द्वितीय शताब्दी तक विद्यमान रहा, पश्चात् श्वेताम्बरसम्प्रदाय में विलीन हो गया। उपर्युक्त वक्तव्यों में प्रकट की गयी अन्य मान्यताएँ, जैसे षट्खण्डागम आदि ग्रन्थों के कर्ता यापनीय-आचार्य थे, पूर्ववत् ही हैं। उनका निरसन उत्तरवर्ती अध्यायों में किया जायेगा। डॉ० सागरमल जी का यह अन्तिम निर्णय कि आज की दिगम्बरपरम्परा का पूर्वज (श्रुतकेवली भद्रबाहुनीत) दक्षिणी अचेल निर्ग्रन्थसंघ है, अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इससे 'जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय' ग्रन्थ में प्रकट की गयीं उनकी दिगम्बरमतविरोधी अनेक मान्यताएँ स्वतः निरस्त हो जाती हैं। इसका प्रदर्शन यथास्थान किया जायेगा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004042
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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