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अ०६/प्र०१
दिगम्बर-श्वेताम्बर-भेद का इतिहास / ४६९ स्वीकार की है और यह माना है कि उनके अनुयायियों ने पाटलिपुत्र आदि की वाचनाओं में संकलित आगमों को अमान्य कर दिया था, क्योंकि उनमें सवस्त्रमुक्ति और स्त्रीमुक्ति आदि का प्रतिपादन था और वे मूल आगमों को विच्छिन्न मानने लगे थे। (जै.ध.या.स./ पृ.४६-४७)। इससे सिद्ध होता है कि भद्रबाहु और उनके अनुयायी सवस्त्रमुक्ति-विरोधी और स्त्रीमुक्ति-विरोधी विचारधारा के अनुगामी थे।
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