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४६० / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १
अ० ६ / प्र० १
एक दिन रात्रि में एक दुबला-पतला नग्न साधु हाथ में पात्र लिये भिक्षा के लिए यशोभद्र सेठ के मकान में प्रविष्ट हुआ । सेठ की गर्भवती पत्नी उसे राक्षस समझकर भयभीत हो गई और उसका गर्भपात हो गया। तब श्रावकों ने साधुओं से निवेदन किया कि आप लोग कन्धे पर कम्बल डाल कर भिक्षा के लिए आया करें, ताकि आपकी नग्नता ढँक जाय और स्त्रियाँ भयभीत न हों । साधुओं ने यह बात भी स्वीकार कर ली। तब से वे अर्धफालक भी धारण करने लगे ।
जब सुभिक्ष हुआ, तब विशाखाचार्य संघ को लेकर उज्जयिनी लौट आये । स्थूलाचार्य ने उनके दर्शनार्थ अपने शिष्यों को भेजा। शिष्यों ने उन्हें वन्दना की, किन्तु विशाखाचार्य ने प्रतिवन्दना नहीं की और पूछा - "मेरी अनुपस्थिति में तुम लोगों ने यह कौनसा दर्शन अपना लिया?" शिष्य लज्जित हुए उन्होंने लौटकर यह वृतान्त अपने गुरु को सुनाया । तब रामिल्य, स्थूलभद्र तथा स्थूलाचार्य ने अपने - अपने संघ के मुनियों को उस दूषित मार्ग को छोड़कर पुनः निर्ग्रन्थमार्ग अपनाने का आदेश दिया। स्थूलाचार्य के वचन सुनकर कुछ साधुओं ने तो मूलमार्ग अपना लिया, किन्तु अधिकांश मुनि उस सुखमय मार्ग को छोड़कर कठिन निर्ग्रन्थमार्ग को अपनाने के लिए तैयार नहीं हुए। जब स्थूलाचार्य ने पुनः आग्रह किया, तब वे मुनि बहुत क्रुद्ध हुए और उन्होंने दण्डप्रहार करके स्थूलाचार्य का वध कर दिया। तब से उनका संघ अर्धफालक संघ कहलाने लगा ।
बहुत काल बीत जाने पर ( वि० सं० १३६ में) रानी चन्द्रलेखा के आमन्त्रण पर वह अर्द्धफालकसंघ सौराष्ट्र देश के वलभीपुर नगर में आया। उस समय इस संघ के आचार्य जिनचन्द्र थे । रानी चन्द्रलेखा ने अपनी पितृनगरी उज्जयिनी में उस अर्धफालकसंघ के साधुओं से शास्त्रों का अध्ययन किया था । अतः वह उन्हें अपना गुरु मानती थी । उसने उनका बहुत स्वागत किया, किन्तु राजा को उनका वेश पसन्द नहीं आया । उसने रानी से कहा, " इन साधुओं का यह कैसा विचित्र रूप है? ये नग्न भी हैं और वस्त्र भी ग्रहण किये हुए हैं। ऐसे साधु तो कहीं नहीं देखे। इन लोगों ने यह कौन सा निन्दनीय मत प्रचलित किया है?" राजा के हृदय के भाव को समझकर रानी ने उन साधुओं के पास श्वेतवस्त्र भेजे और उन्हें पहनने की प्रार्थना की। साधुओं ने रानी की प्रार्थना स्वीकार कर ली। उस दिन से वह अर्धफालकसंघ श्वेताम्बरसंघ कहलाने लगा। इस प्रकार श्वेताम्बरसंघ की उत्पत्ति विक्रम संवत् १३६ (७९ ई०) में हुई।
९. भद्रबाहुचरित / परिच्छेद २, ३ एवं ४ / श्लोक १-५३ । १०. धृतानि श्वेतवासांसि तद्दिनात्समजायत।
श्वेताम्बरमतं ख्यातं ततोऽर्द्धफालकमतात् ॥ ४ / ५४ ॥ मृते विक्रमभूपाले षट्त्रिंशदधिके शते ।
गतेऽब्दानामभूल्लोके मतं श्वेताम्बराभिधम् ॥ ४ / ५५ ॥ भद्रबाहुचरित ।
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