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________________ अ०५/प्र०३ पुरातत्त्व में दिगम्बर-परम्परा के प्रमाण / ४१५ नामक स्थान से मिली है। यह ऋषभनाथ की खड्गासन प्रतिमा है, जिस पर सं० ७४४ (ई० ६८७) का लेख है। इसमें धोती का पहनावा दिखाया गया है। धोती की सिकुड़न बाएँ पैर पर विशेषरूप से दिखायी गयी है। इससे संभवतः कुछ पूर्व की वे पाँच धातुप्रतिमाएँ हैं, जो वलभी से प्राप्त हुई हैं, और प्रिन्स ऑफ वेल्स संग्रहालय में सुरक्षित हैं। ये प्रतिमाएँ भी सवस्त्र हैं, किन्तु इनमें धोती का प्रदर्शन वैसे उग्ररूप में नहीं पाया जाता, जैसा वसन्तगढ़ की प्रतिमा में। इस प्रकार की धोती का प्रदर्शन पाषाणमूर्तियों में भी किया गया पाया जाता है, जिसका एक उदाहरण रोहतक (पंजाब) में पार्श्वनाथ की खड्गासन मूर्ति है। प्रिंस ऑफ वेल्स संग्रहालय की चाहरडी (खानदेश) से प्राप्त हुई आदिनाथ की प्रतिमा १०वीं शती की धातुमय मूर्ति का एक सुन्दर उदाहरण है।"५० इस प्रकार श्वेताम्बर-साहित्य के अनुसार श्वेताम्बर-परम्परा में तीर्थंकर महावीर के जीवनकाल में ही सवस्त्र जिनप्रतिमाओं का निर्माण प्रारम्भ हो गया था और 'प्रवचनपरीक्षा' ग्रन्थ के कर्ता का मत है कि सम्राट् सम्प्रति (ई० पू० २३२-१९०) तथा उत्तरवर्ती राजाओं ने ऐसी जिनप्रतिमाओं का निर्माण कराया था, जिनमें पुरुषचिह्न या स्त्रीचिह्न की रचना नहीं होती थी, अतः वस्त्ररहित होते हुए भी वे नग्न दिखाई नहीं देती थीं। आगे चलकर तीर्थंकरों की अंचलिकायुक्त प्रतिमाएँ बनने लगीं। किन्तु मुनि कल्याणविजय जी कहते हैं कि आज से २००० वर्ष ५१ पहले बनाई जानेवाली प्रतिमाओं पर देवदूष्य वस्त्र इस प्रकार फैलाया जाता था कि उनकी नग्नता पूरी तरह ढंक जाती थी। इन उल्लेखों से सिद्ध है कि श्वेताम्बर-परम्परा में नग्न जिन प्रतिमाओं का निर्माण कभी नहीं किया गया। और क्योंकि श्वेताम्बरमतानुसार महावीर के जीवनकाल में ही श्वेताम्बर-सम्प्रदाय सवस्त्र जिनप्रतिमाओं का निर्माण कराने लगा था और सम्प्रति आदि राजाओं ने अनग्न एवं निर्वस्त्र प्रतिमाएँ बनवाई थीं, अतः डॉ० यू० पी० शाह का यह कथन वास्तविकता से परे है कि कुषाणकाल तक दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों की जिनप्रतिमाएँ नग्न होती थीं और उसके बाद ही उनमें भिन्नता आयी है।५२ यह कथन इसलिए भी अयुक्तियुक्त है कि जो श्वेताम्बर बन्धु नग्न जिनप्रतिमाओं को जिनबिम्ब ही न मानते हों और उनके दर्शन को कामविकार की उत्पत्ति का ५०. डॉ० हीरालाल जैन : भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान / पृ. ३५१ ५१. अब २१०० वर्ष पहले। ५२. "All the figures of Tirthankaras are nude, showing that the difference between images of the Digambaras (sky-clad, worshipping nude images) and the Svetambaras (white-robed, adoring Tirthankara figures wearing a lower garment) was posterior to the Kuşānā period." (Studies In Jaina Art, p.11). में ही श्वेताम्बर-सम्प्रद Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004042
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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