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४०६ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १
अ०५/प्र०२ अनुवाद-"खारवेल ने मगधवासियों को अत्यन्त भयभीत करते हुए हाथियों को सुगांगेय (प्रासाद) पर पहुँचाया और मगध के राजा बृहस्पतिमित्र से अपने पैरों की वन्दना करायी तथा नन्दराज द्वारा ले जायी गयी कलिंग-जिन की प्रतिमा एवं गृहरत्न आदि अंग-मगध के धन को ले आया।"
यह नन्दराज नन्दवंश का द्वितीय सम्राट् था। इसकी ऐतिहासिक तिथि पर प्रकाश डालते हुए डॉ० ज्योतिप्रसाद जी जैन लिखते हैं
"महावीर संवत् ६० (ई० पू० ४६७) में मगध में एक नये वंश का प्रारंभ हुआ, जिसे नंदवंश कहते हैं और जो लगभग १५० या १५५ वर्ष पर्यन्त सत्तारूढ़ रहा। --- इस नवीन वंश के प्रथम सम्राट का नाम भिन्न-भिन्न अनुश्रुतियों में शिशुनाग, काकवर्ण, कालाशोक, नन्दिवर्धन, अवन्तिवर्धन, व्रात्यनन्दी, महानन्दी आदि मिलता है, जिसमें कई एक विभिन्न नामों का समीकरण कर दिया गया प्रतीत होता है। ऐसा लगता है कि उसका नाम व्रात्यनन्दी शिशुनाग था और वह पूर्व नरेश का पुत्र आदि न होकर कोई दूर का सम्बन्धी था, किन्तु था मूल शैशुनाग वंश से ही सम्बन्धित। डॉ० काशीप्रसाद जायसवाल को पटना के निकट उसकी एक मूर्ति भी मिली थी, जिस पर उन्होंने 'वात्ता' या 'व्रात्यनन्दी' शब्द पढ़ा था। यह नाम उसके व्रात्यक्षत्रिय होने का समर्थक है और शिशुनाग नाम श्रेणिक के वंश से उसके सम्बन्धित होने का। न्याय्य उत्तराधिकारी न होने से नन्दी नाम वंशपरिवर्तन का सूचक हुआ। वह और उसके वंशज पूर्व-नन्दों के नाम से भी प्रसिद्ध हैं। उसने १८ वर्ष पर्यन्त (ई० पू० ४४९ तक) राज्य किया प्रतीत होता है। मगध साम्राज्य की एकता, विस्तार एवं शक्ति उसके समय में पूर्ववत् बनी रही।
"इसका उत्तराधिकारी नन्दिवर्धन काकवर्ण कालाशोक था। ई० पू० ४४९-४०७ तक ४२ वर्ष उसने राज्य किया। वह इस वंश का सर्वमहान् और प्रतापी नरेश था। महावीर संवत् १०३ (ई० पू० ४२४) में उसने कलिंग की विजय की थी और उस राष्ट्र के इष्टदेवता कलिंग-जिन (या अग्रजिन, अर्थात् तीर्थंकर ऋषभदेव) की मूर्ति को वह वहाँ से उठा लाया था और उसे उसने अपनी राजधानी में स्थापित किया था। खारवेल के हाथीगुफा-शिलालेख से यह तथ्य प्रकट है। ---
__ "उसके उपरान्त उसका पुत्र महानन्दिन् राजा हुआ, जिसने लगभग ४० वर्ष राज्य किया। यह भी अपने पिता के समान शक्तिशाली एवं प्रतापी नरेश था।--- महानन्दिन् के उपरान्त मगध में फिर एक घरेलू राज्यक्रान्ति हुई। --- इस परिस्थिति का लाभ उठाकर एक साहसी एवं चतुर युवक महापद्म ने राज्य-सिंहासन हस्तगत कर लिया। उसके अन्य नाम सर्वार्थसिद्धि और उग्रसेन (यूनानी लेखकों का एग्रेमेज)
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