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________________ अ०५ / प्र० २ पुरातत्त्व में दिगम्बर- परम्परा के प्रमाण / ४०५ यह संभव है कि यक्षपूजा सिन्धुसम्यता - जितनी प्राचीन हो, किन्तु लोहानीपुरजिनप्रतिमा से अत्यन्त साम्य रखने वाली उक्त प्रतिमा यक्ष की है, यह सिद्ध नहीं होता। जिनप्रतिमा से साम्य रखने के कारण वह जिनप्रतिमा होने की ही गवाही देती है। इस प्रकार मोहेन-जो-दड़ो और हड़प्पा से प्राप्त कायोत्सर्ग-मुद्रामय नग्न जिनप्रतिमाओं से प्रमाणित है कि सवस्त्रमुक्ति - निषेधक निर्ग्रन्थ (दिगम्बर जैन ) परम्परा ईसा से ३००० वर्ष पहले विद्यमान थी । ३ कलिंग - जिनप्रतिमा ३० ईसा से १७० वर्ष पूर्व कलिंग (उड़ीसा) में महामेघवाहन खारवेल नामक जैन राजा हुआ था। उसने खण्डगिरि - उदयगिरि (कुमरगिरि और कुमारीगिरि) नामक पहाड़ियों पर मुनियों की ध्यान-साधना के लिए अनेक गुफाएँ बनवाई थीं। उनमें से हाथीगुम्फा नामक गुफा में राजा खारवेल का एक शिलालेख है, जिसमें लिखा है उसने मगध पर आक्रमण कर वहाँ के राजा वृहस्पतिमित्र ( पुष्यमित्र) ३१ से अपने पैरों की वन्दना करवाई और कलिंगजिन ( भगवान् ऋषभदेव ) की उस प्रतिमा को वापिस ले आया, जिसे नन्दराज ( नन्दिवर्द्धन ) ३२ उठाकर ले गया था । लेख का वह अंश इस प्रकार है " मागधानां च विपुलं भयं जनेतो हथी सुगंगीय पाययति । मागधं च राजानं बहस- तिमितं च पादे वंदायति । नंदराजनीतं च कलिंगजिनं संनिवेसं गहरतनानि पडिहारेहिं अंगमागधवसुं च नेयाति । " ३३ संस्कृत छाया—“ मागधानां च विपुलं भयं जनयन् हस्तिनः सुगाङ्गेयं प्रापयति । मागधं च राजानं बृहस्पतिमित्रं पादौ वन्दयति । नन्दराजनीतं च कलिङ्गजिनसन्निवेशं --- गृहरत्नानि प्रतिहारै: अंगमागधवसूनि च नाययति । " ३०. श्री काशीप्रसाद जायसवाल : श्रीखारवेल - प्रशस्ति और जैनधर्म की प्राचीनता ('अनेकान्त / वर्ष १ / किरण ४ / वी.नि.सं. २४५६ / पृ. २४२ ) । ३१. श्री काशीप्रसाद जायसवाल के अनुसार वृहस्पतिमित्र संभवतः पुष्यमित्र के आठ बेटों में से था और मगध का प्रान्तीय शासक था । ( वही / पृ. २४२ ) । ३२. वही / पृ. २४२ । ३३. चन्द्रकान्तबाली शास्त्री : खारवेल प्रशस्ति : पुनर्मूल्यांकन / पृ. १४ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004042
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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